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इषुकारीय - छहों को विरक्ति, दीक्षा और मुक्ति -
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कठिन शब्दार्थ - सम्मं - सम्यक् रूप से, धम्म - धर्म को, वियाणित्ता - जानकर, चिच्चा - छोड़कर, कामगुणे - कामभोगों को, वरे - श्रेष्ठ, तवं - तप को, पगिज्झ - स्वीकार कर, अहक्खायं - यथाख्यात - तीर्थंकरादि द्वारा प्रतिपादन किये हुए, घोरं - घोर, घोरपरक्कमा - घोर पराक्रमी।
भावार्थ - सम्यक् धर्म को जान कर तथा प्रधान कामभोगों को छोड़ कर वे यथाख्यात तीर्थंकर भगवान् द्वारा कहे गये घोर तप को स्वीकार कर के तप-संयम. में घोर पराक्रम करने लगे।
- छहों को विरक्ति, दीक्षा और मुक्ति । एवं ते कमसो बुद्धा, सव्वे धम्म-परायणा। जम्म-मच्चु-भउब्विग्गा, दुक्खस्संत-गवेसिणो॥५१॥
कठिन शब्दार्थ - कमसो - क्रमशः, बुद्धा - प्रतिबुद्ध हुए, धम्मपरायणा - धर्म, परायण, जम्ममच्चुभउव्विग्गा - जन्म और मृत्यु के भय से उद्विग्न, दुक्खस्संत - दुःख के अंत के, गवेसिणो - गवेषक।
भावार्थ - इस प्रकार वे सब (छहों) जीव क्रमशः प्रतिबोध पाकर धर्म में तत्पर हुए तथा जन्म और मृत्यु के भय से उद्विग्न होकर दुःखों का समूल नाश करने के लिए उद्यमवंत बने।
विवेचन - देवभद्र, यशोभद्र दोनों कुमारों को मुनियों को देखने से जातिस्मरण ज्ञान हुआ और वैराग्य पैदा हुआ। इन दोनों पुत्रों के निमित्त से इनके माता-पिता भृगु पुरोहित और यशा पुरोहितानी को बोध मिला व वैराग्य प्राप्त हुआ। इन चारों के निमित्त से रानी कमलावती को और रानी के निमित्त से राजा को वैराग्य पैदा हुआ। ये छहों जीव चरम शरीरी थे। इसलिए आठों कर्मों को क्षय करके उसी भव में मोक्ष चले गये।
सासणे विगयमोहाणं, पुव्विं भावण-भाविया।
अचिरेणेव कालेण, दुक्खस्संतमुवागया॥५२॥ - कठिन शब्दार्थ - सासणे - जिनशासन में, विगयमोहाणं - मोह को दूर कर, पुग्विंपूर्वजन्म में, भावण भाविया - भावना से भावित, अचिरेणेव - थोड़े ही, कालेण - समय में, दुक्खस्संतं - दुःखों के अंत को, उवागया - प्राप्त हुए।
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