Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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इषुकारीय - पुत्रों का उत्तर
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विवेचन - कुमार कहते हैं कि पिताजी!"पाप पुण्य कुछ नहीं है परलोक नहीं है" इस प्रकार जैसा आप मानते हैं, अज्ञान के वश हो कर हम भी वैसा ही मानते थे, किन्तु अब तत्त्व का यथार्थ स्वरूप जान लेने के बाद यह बात हमारे हृदय में बिलकुल नहीं जंचती है।
अब्भाहयम्मि लोगम्मि, सव्वओ परिवारिए। अमोहाहिं पडतीहि, गिहंसि णं रइं लभे॥२१॥
कठिन शब्दार्थ - अन्माहयम्मि - आहत (पीड़ित) है, सव्वओ - सब प्रकार से, परिवारिए - घिरा हुआ है, अमोहाहिं - अमोघा - अमोघ शस्त्र धाराएं, पडतीहिं - गिर रही है, गिर्हसि - घर में, रई - रति (आनंद) को, ण लभे - नहीं प्राप्त होता।
भावार्थ -- यह लोक सब प्रकार से पीड़ित हो रहा है और सब प्रकार से चारों ओर से घिरा हुआ है और अमोघ शस्त्र धाराएं गिर रही हैं ऐसी अवस्था में हमें गृहस्थावास में किचिंत् मात्र भी आनंद प्राप्त नहीं होता।
विवेचन - जब हम धर्म से अनभिज्ञ थे तब घर में रह कर मोहवश पाप करते रहे। अब हम देव, गुरु, धर्म का स्वरूप जानने लगे हैं अतः पुनः पाप का आचरण नहीं करेंगे।
केण अम्माहओ लोगो, केण वा परिवारिओ। .. का वा अमोहा वुत्ता, जाया! चिंतावरोह मे॥२२॥
कठिन शब्दार्थ - केण - किससे, अन्माहओ - पीड़ित हो रहा है, वुत्ता - कही गई है, चिंतावरो - चिंतित हो रहा हूँ, मे - मैं।
भावार्थ - पुत्रों के उपरोक्त कथन को सुन कर भृगु पुरोहित पूछता है कि हे पुत्रो! यह लोक किससे पीड़ित हो रहा है और किसने इस लोक को चारों ओर से घेर रखा है तथा अमोघ शस्त्र की धारा कौन-सी कही गई है, यह जानने के लिए मैं बड़ा चिन्तित हो रहा हूँ।
पुत्रों का उत्तर मच्चुणा अब्भाहओ लोगो, जराए परिवारिओ। अमोहा रयणी वुत्ता, एवं ताय! वियाणह॥२३॥
कठिन शब्दार्थ - मच्चुणा - मृत्यु से, जराए - जरा से, रयणी - रातदिन, वियाणहसमझो।
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