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उत्तराध्ययन सूत्र - चौदहवां अध्ययन 'MMMMMMMMMMMMMMMMMMMMMAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA
भावार्थ - पति के उपरोक्त वचन सुन कर यशा कहने लगी - प्रधान रस वाले ये उत्तम काम-भोग तुम्हें पर्याप्त रूप से प्राप्त हुए हैं इसलिए हम पहले इन काम-भोगों को खूब अच्छी तरह भोगें और पीछे जब वृद्धावस्था आवेगी उस समय प्रधान मार्ग (संयम). को अंगीकार कर लेंगे। - विवेचन - पुरोहित पत्नी यशा ने अपने पति को भोगों का आमंत्रण (उत्तर) देते हुए उपरोक्त गाथा में कामगुण - पंचेन्द्रियों को सुख देने वाले पदार्थों की तीन विशेषताएं बतायी हैं
१. सुसंभिया, (सुसम्भृत) - अच्छे-अच्छे वस्त्र, सरस स्वादिष्ट मिष्ठान्न, पुष्प, चंदन, नाटक, वाद्य, गीत, वीणा आदि वस्तुएं सम्यक् प्रकार से संस्कृत है सुसज्जित है।
२. संपिंडिया (सपिण्डिता) - एक जगह सुसंग्रहीत है। ... ३. अग्गरस-प्पभूया (अग्रयरसप्रभूता) - अग्रय यानी प्रधान श्रृंगार रस के उत्पादक हैं अग्रयं रस प्रचुर हैं या जिनमें प्रचुर अग्रय - श्रेष्ठ रस आनंद आता है।
भुत्ता रसा भोइ! जहाइ णे वओ, ण जीवियट्ठा पजहामि भोए। - लाभं अलाभं च सुहं च दुक्खं, संचिक्खमाणो चरिस्सामि मोणं ॥३२॥
कठिन शब्दार्थ - भुत्ता - भोग लिये हैं, रसा - विषय: रस, भोइ - हे भवति (ब्राह्मणी), जहाइ - छोड़ रही है, वओ - यौवनावस्था, जीवियट्ठा - जीवन के लिए, पजहामि - छोड़ता हूँ, भोए - भोगों को, लाभं - लाभ, अलाभं - अलाभ को, सुहं - सुख, च - और, दुक्खं - दुःख को, संचिक्खमाणो - समभाव से देखते हुए, चरिस्सामि - आचरण करूँगा, मोणं - मुनिवृत्ति का। ...भावार्थ - भृगु पुरोहित अपनी पत्नी को उत्तर देता है, हे भाग्यशालिनि प्रिये! उत्तम रसों एवं काम-भोगों को हम भोग चुके हैं। युवावस्था अब हमें छोड़ती जा रही है, इसलिए मैं इन काम-भोगों को छोड़ देना चाहता हूँ, असंयम जीवन के लिए एवं आगामी भव में उत्तम कामभोगों की प्राप्ति की लालसा से मैं इन्हें नहीं छोड़ रहा हूँ, किन्तु त्यागी जीवन के लाभ और अलाभ तथा सुख और दुःख इन सब को खूब सोच समझ कर मैं मुनि वृत्ति अंगीकार करता हूँ।
- मा हु तुमं सोथरियाण संभरे, जुण्णो व हंसो पडिसोत्तगामी। - मुंजाहि भोगाई मए समाणं, दुक्खं खु भिक्खायरिया विहारो॥३३॥
- कठिन शब्दार्थ - सोयरियाण - सहोदर भाइयों को, संभरे - स्मरण करना पड़े,
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