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इषुकारीय कामगुणों के तीन विशेषण
भावार्थ अब भृगु पुरोहित अपनी स्त्री को संबोधित कर इस प्रकार कहने लगा, हे वाशिष्ठि ( वशिष्ठ गोत्र में उत्पन्न ) अब मेरे लिए भिक्षाचर्या (दीक्षा अंगीकार करने का अवसर आ पहुँचा है क्योंकि जिस प्रकार शाखाओं से ही वृक्ष समाधि एवं शोभा को प्राप्त होता है और शाखाओं के कट जाने से वही वृक्ष स्थाणु (ठूंठ) कहलाता है। इसी प्रकार पुत्रों से रहित होकर अब, मेरा गृहस्थावास में रहना अच्छा नहीं है और उस ठूंठ के समान शोभा रहित है। पंखाविहूणो व्व जहेह पक्खी, भिच्चविहूणो व्व रणे णरिंदो । विवण्णसारो वणिओ व्व पोए, पहीणपुत्तो मि तहा अहं पि ॥ ३० ॥
राजा,
कठिन शब्दार्थ - पंखा विहूणोव्व - पंखों से रहित तथा, जहेह - जैसे इस लोक में, पक्खी - पक्षी, भिच्चविहूणो - भृत्य (सेना) से रहित, रणे - संग्राम में, णरिंदो विवण्णसारो धनमाल रहित, वणिओ - व्यापारी ( वणिक), पोए - जहाज, पहीणपुत्तो पुत्रों से रहित ।
भावार्थ - जैसे इस संसार में पंख बिना पक्षी तथा संग्राम में सेवकों (सेना) रहित राजा और जहाज में द्रव्य-रहित व्यापारी शोभित नहीं होता, प्रत्युतः उन्हें शोक करना पड़ता है वैसे ही पुत्रों से रहित मैं भी शोभित नहीं हो कर दुःखित होता हूँ ।
विवेचन - भृगु पुरोहित ने वशिष्ठ गोत्रीया अपनी धर्मपत्नी यशा को दीक्षा में बाधक मान कर समझाते हुए कहा- वृक्षों की शाखाए कट जाने से वह वृक्ष शोभाहीन ठूंठ मात्र रह जाता है। जैसे वृक्षों की शोभा शाखाओं से है उसी प्रकार मेरी शोभा भी इन पुत्रों से है।
जिस प्रकार पंखविहीन पक्षी, सैनिक रहित राजा युद्ध में तथा धन रहित वणिक की जलपोत में दुर्दशा होती है उसी प्रकार पुत्रों के बिना मेरी भी दुर्दशा होगी, अतः पुत्रों के साथ मेरा भी मुनि बनना श्रेयस्कर है।
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कामगुणों के तीन विशेषण
सुसंधिया कामगुणा इमे ते, संपिंडिया अग्ग-रसप्पभूबा ।
भुंजामु ता कामगुणे पगामं, पच्छा गमिस्सामु प्रहाणमग्गं ॥ ३१ ॥
कठिन शब्दार्थ - सुसंधिया - सुसम्भृत- सम्यक् रूपेण संस्कृत, कामगुणा - कामभोग, संपिंडिया सु संग्रहीत, अग्गरसप्पभूया प्रधान रस वाले पर्याप्त, भुंजामु - भोग लो, पगामं - यथेष्ट, गमिस्सामु - चलेंगे, पहाणमग्गं प्रधान मार्ग (संयम) को ।
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