Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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इषुकारीय - पत्नी की शंकाओं का समाधान.. २५१ ***************************************kkkkkkkkkkkkkkarkkkkkkk जुण्णो - जीर्ण (बुढ़े), हंसो - हंस, पडिसोत्तगामी - प्रतिस्रोतगामी - विपरीत धारा में बहने वाले, मए समाणं - मेरे साथ, भिक्खायरिया - भिक्षाचर्या, विहारो - विहार।
भावार्थ - यशा अपने पति से कहती है कि हे स्वामिन्! जिस प्रकार जल-प्रवाह के सम्मुख जाता हुआ बूढ़ा हँस अपनी असमर्थता के कारण बाद में पछताता है उसी प्रकार कहीं ऐसा न हो कि तुम भी दीक्षा लेकर फिर संयम के कष्टों से घबरा कर पश्चात्ताप करने लगो
और अपने स्वजन सम्बन्धियों को तथा पहले भोगे हुए काम-भोगों को याद करने लगो। इसलिए मैं आपसे कहती हूँ कि मेरे साथ गृहस्थवास में रहते हुए इन प्राप्त हुए काम-भोगों को भोगो, क्योंकि भिक्षु बन कर घर-घर भिक्षा माँगना तथा ग्रामानुग्राम अप्रतिबद्ध विहार करना आदि मुनि जीवन की समस्त क्रियाओं का पालन करना बड़ा ही कष्टकारी है।
विवेचन - पुरोहित पत्नी जीर्ण हंस की उपमा देती हुई कहती है कि - जैसे बूढ़ा हंस विपरीत जल प्रवाह में तैरने लगता है किन्तु तैरने में असमर्थ होने पर अनुस्रोत जल प्रवाह में तैरने को याद करते हुए मन में खिन्न होता है मैंने विपरीत जल प्रवाह में तैरना क्यों प्रारम्भ किया। उसी प्रकार आप भी प्रतिस्रोतगामी बनने की सोच रहे हो किन्तु बूढ़े होने पर जब संयम मार्ग में चलने पर थक जाओगे, भिक्षाचर्यावृत्ति सहन नहीं होगी, विहार दुष्कर होगा, तब पश्चात्ताप पूर्वक गृहवास को, अपने भाइयों को याद करोगे, पुनः अनुकूल प्रवाह की ओर तैरने का स्मरण करोगे। अतः इससे तो यही श्रेष्ठ है कि गृहवास में रह कर दाम्पत्य सुखों को भोगो।
.. पत्नी की शंकाओं का समाधान, . .. जहा य भोड़ तणुयं भुयंगो, णिम्मोयणिं हिच्च पलेई मुत्तो
. एमेए जाया पयहंति भोए, ते अहं कहं माणुगमिस्समेक्को?॥३४॥
कठिन शब्दार्थ - तणुयं - शरीर में उत्पन्न हुई, भुयंगो - भुजंग (सर्प), णिम्मोयणिंकांचली को, हिच्च - छोड़ कर, पलेइ :- भाग जाता है, मुत्तो - मुक्त मन से, पयहति - . छोड़ते हैं, ण - नहीं, अणुगमिस्सं - अनुगमन करूँ, इक्को - अकेला।
भावार्थ - भूमु पुरोहित अपनी स्त्री से कहता है कि है भद्रे! जिस प्रकार सर्प, अपने शरीर पर उत्पन्न हुई कांचली को छोड़ कर निरपेक्ष हो कर भाग जाता है और वह पीछे फिर कर उसे देखता तक नहीं इसी प्रकार ये मेरे दोनों पुत्र, कामभोगों को छोड़ कर चले जा रहे हैं ऐसी अवस्था में मैं भी उन दोनों के साथ क्यों नहीं चला जाऊँ, मैं अकेला पीछे रह कर क्या करूँ?
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