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इषुकारीय - भविष्य में हम साथ ही दीक्षा लेंगे?".
भविष्य में हम साथ ही दीक्षा लेंगे? एगओ संवसित्ताणं, दुहओ सम्मत्त-संजुया। पच्छा जाया! गमिस्सामो, भिक्खमाणा कुले कुले॥२६॥
कठिन शब्दार्थ - एगओ - एक साथ, संवसित्ताणं - रह कर, पच्छा - पीछे, सम्मत्त-संजुया - सम्यक्त्व सहित व्रतों से युक्त, गमिस्सामो - दीक्षित होंगे, भिक्खमाणा - भिक्षा ग्रहण करते हुए, कुले कुले - ऊंच, नीच, मध्यम कुलों में।
भावार्थ - अपने पुत्रों के उपरोक्त वचन सुन कर भृगु पुरोहित कहने लगा कि हे पुत्रो! हम सब पहले सम्यक्त्व सहित श्रावक व्रत को धारण करके यहीं गृहस्थावास में एक साथ रह कर पीछे जब तुम्हारी अवस्था परिपक्व हो जायगी तब वृद्धावस्था आने पर दीक्षा ग्रहण कर लेंगे और ऊँच, नीच, मध्यम सभी कुलों में शुद्ध भिक्षावृत्ति से संयम-यात्रा का निर्वाह करते हुए
विचरेंगे।
विवेचन - पुरोहित ने पुत्रों को गृहवास में रोकने के लिए कहा कि पहले तुम हमारी बात मान लो फिर हम तुम्हारी बात मान लेंगे अर्थात् हम सब पहले सम्यक्त्व सहित गृहस्थ धर्म का पालन करें फिर हम चारों मुनि धर्म में दीक्षित होकर भिक्षा ग्रहण करते हुए विचरेंगे।
जस्संऽत्थि मच्चुणा सक्खं, जस्स वऽस्थि पलायणं। - जो जाणे ण मरिस्सामि, सो हु कंखे सुए सिया॥२७॥ - कठिन शब्दार्थ - जस्स - जिस पुरुष की अस्थि - है, मच्चुणा - मृत्यु के साथ, सक्खं - मित्रता, पलायणं - पलायन-भाग कर जाने की शक्ति, जाणे - जानता हो, ण मरिस्सामि - नहीं मरूमा, कंखे - इच्छा कर सकता है, सुए सिया - धर्मकार्य कल कर लूंगा।
भावार्थ - पिता के वचन सुन कर पुत्रों ने उत्तर दिया कि, हे पिताजी! जिस पुरुष की मृत्यु के साथ मित्रता हो अथवा जिस पुरुष की मृत्यु के पाश से छूट कर भाग जाने की शक्ति हो अथवा जो पुरुष यह जानता हो कि मैं इतने वर्ष तक नहीं मरूँगा वास्तव में वही पुरुष ऐसी इच्छा कर सकता है कि यह धर्म कार्य मैं कल कर लूँगा।
- विवेचन - 'जिसकी मृत्यु के साथ मैत्री हो, वही धर्म के कार्य को कल पर डाल सकता है' - यह इस गाथा से स्पष्ट है।
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