Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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इषुकारीय - पुत्रों का पिता को समाधान
वाले हैं, जिसमें स्वल्प सुख और बहुत दुःख हो, वे सुखदायी कैसे कहे जा सकते हैं? ये काम - भोग संसार को बढ़ाने वाले हैं और मोक्ष के शत्रु के समान हैं। ये काम - भोग अनर्थों की खान हैं।
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परिव्वयंते अणियत्तकामे, अहो य राओ परितप्पमाणे । अण्णप्पमत्ते धणमेसमाणे, पप्पोति मच्चुं पुरिसो जरं च ॥ १४ ॥ भटकता फिरता है, अणियत्तकामे
कामभोगों से
कठिन शब्दार्थ परिव्वयं अनिवृत्त, अहो य राओ दिन रात, परितप्यमाणे संतप्त होता हुआ, अण्णप्पमत्ते. दूसरों (स्वजनों) के लिए प्रमत्त, धणमेसमाणे - धन की खोज में लगा हुआ, पप्पोति प्राप्त करता है, मच्छं - मृत्यु को, जरं- जरा को ।
भावार्थ - काम-भोगों से निवृत्ति न करने वाला अर्थात् विषय सुखों में गृद्ध बना हुआ पुरुष अपनी अभिलाषाओं को पूर्ण करने के लिए दिन और रात परिताप करता हैं अर्थात् आर्त्तध्यान और रौद्रध्यान करता हुआ संसार में परिभ्रमण करता है, अन्य स्वजन सम्बन्धियों के लिए दूषित प्रवृत्ति करके धन की गवेषणा करता हुआ यह अन्त में जरा और मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
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इमं च मे अत्थि इमं च णत्थि, इमं च मे किच्च इमं अकिच्चं । तं एवमेवं लालप्पमाणं, हरा हरंति त्ति कहं पमाओ ? ।। १५ ।।
कठिन शब्दार्थ - इमं - यह, मे मेरे पास, अस्थि- है, णत्थि - नहीं है, किच्चकरना है, अकिच्चं - नहीं करना है, एवमेवं - इस प्रकार, लालप्पमाणं - प्रलाप ( बकवास ) करते हुए, हरा - दिन रात रूपी चोर, हरंति - हर लेते हैं, कहं- कैसे, पमाओ प्रमाद । भावार्थ यह पदार्थ मेरे पास है और यह पदार्थ नहीं हैं तथा यह कार्य तो मैंने कर लिया है और यह कार्य अभी करना शेष है। इस प्रकार प्रलाप करते हुए अर्थात् विषय-भोगों की सामग्री जुटाने में व्याकुल बने हुए उस पुरुष के प्राणों को रात-दिन रूपी चोर हर कर परलोक में पहुँचा देते हैं, तो फिर धर्म के विषय में प्रमाद कैसे किया जा सकता है? (अर्थात् बुद्धिमान पुरुष को धर्म के विषय में क्षण मात्र भी प्रमाद नहीं करना चाहिये) ।
विवेचन - उपरोक्त चार गाथाओं में भृगु पुरोहित द्वारा अपने पुत्रों के समक्ष निम्न चार बातें रखी गयी थी- १. पहले वेदों को पढ़ो २. ब्राह्मणों को भोजन दो ३. विवाह करके पुत्र
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