Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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इषुकारीय - पिता का पुत्रों को प्रलोभन
विवेचन - जब पुरोहित पुत्रों ने अपने पिता से दीक्षा की आज्ञा मांगी तो उन्हें वैदिक मान्यतानुसार रोकते हुए कहा कि अपुत्र व्यक्ति की गति नहीं अर्थात् परलोक नहीं सुधरता क्योंकि मनुस्मृति में कहा है - . अपुत्रस्य गतिनास्ति स्वों नैव च नैव च।
तस्मात् पुत्र मुखं हष्ट्वा, पश्चात् धर्म समाचरते॥
- पुत्र रहित व्यक्ति की गति नहीं होती, स्वर्ग तो उसे हरगिज नहीं मिलता इसलिए पुत्र का मुख देख कर धर्म का आचरण करना चाहिये।
अतः पहले चारों वेद पढ़कर ब्राह्मणों को भोज्य देकर, स्त्रियों के साथ भोग भोग कर और पुत्र को गार्हस्थ्य भार सौंप कर फिर अरण्यवासी श्रेष्ठ मुनि धर्म स्वीकार करना।
पिता का पुत्रों को प्रलोभन सोयग्गिणा आय-गुणिंधणेणं, मोहाणिला पजलणाहिएणं। - संतत्तभावं परितप्पमाणं, लालप्पमाणं बहुहा बहुं च॥१०॥ .. पुरोहियं तं कमसोऽणुणंतं, णिमंतयंतं च सुए धणेणं।
जहक्कम कामगुणेहि चेव, कुमारगा ते पसमिक्ख वक्कं॥११॥
कठिन शब्दार्थ - सोयग्गिणा - शोक रूपी अग्नि से, आयगुणिंधणेणं - अपने रागादि गुण रूप ईंधन, मोहाणिला - मोह रूपी पवन से, पजलणाहिएणं - अधिकाधिक प्रज्वलित, संतत्त भावं - संतप्त अंतःकरण वाले, परितप्पमाणं - परितप्त होते हुए, लालप्पमाणं - दीन हीन वचन बोलते हुए, बहुहा - बहुत बार, कमसो - क्रमशः, अणुणंतं - अनुनय करते हुए, धणेणं - धन के, सुए - पुत्रों को, जहक्कम - यथाक्रम से, पसमिक्ख - भली भांति देख कर, वक्कं - वचन।
भावार्थ - आत्मगुण रूप ईंधन से युक्त मोह रूपी वायु से अत्यन्त प्रज्वलित होती हुई शोक रूपी अग्नि से संताप एवं परिताप को प्राप्त होते हुए और बहुत प्रकार से अत्यधिक आलाप-संलाप करते हुए तथा क्रम से अनुनय करते हुए और अपने पुत्रों को यथाक्रम से कामभोगों का और धन का निमंत्रण करते हुए उस भृगुपुरोहित को वे दोनों कुमार विचार कर इस प्रकार वचन कहने लगे।
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