Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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इषुकारीय - पुत्रों द्वारा दीक्षा की अनुमति मांगना
भावार्थ - ब्राह्मण के योग्य कर्म करने वाले उस भृगु पुरोहित के दोनों प्रिय पुत्रों को जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया जिससे वे पूर्वभव में किये हुए शुद्ध ( नियाणा रहित ) आचार तप और संयम का स्मरण करने लगे ।
ते कामभोगे असज्जमाणा, माणुस्सएस जे यावि दिव्वा । मोक्खाभिकंखी अभिजाय-सड्डा, तातं उवागम्म इमं उदाहु ॥ ६॥ कठिन शब्दार्थ - कामभोगेसु - कामभोगों में, असज्जमाणा दिव्य, मोक्खाभिकंखी
माणुस्सएस मनुष्य संबंधी, दिव्वा
अभिजा
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तत्त्वज्ञान ( आत्म-कल्याण) की रुचि वाले, श्रद्धा सम्पन्न, तातं - पिता के आकर, इमं - इस प्रकार, उदाहु - कहने लगे ।
पास, उवागम्म
भावार्थ जब उन दोनों कुमारों को जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया तब वे मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों में और जो देव सम्बन्धी काम भोग हैं उनमें आसक्त न होते हुए मोक्ष की अभिलाषा करते हुए तथा तत्त्व की रुचि वाले दोनों कुमार अपने पिता के पास आकर नम्रतापूर्वक इस प्रकार कहने लगे।
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विवेचन प्रस्तुत गाथाओं में भृगु पुरोहित के दोनों पुत्रों की विरक्ति का वर्णन है। दोनों कुमारों ने जब जैन मुनियों को देखा तब से उन्हें उनके प्रति आकर्षण पैदा हुआ और चिंतन करते हुए उन्हें जाति स्मरण ज्ञान हो गया। इस प्रकार मुनि एवं जातिस्मरण ज्ञान उनकी संसार विरक्ति के निमित्त बनें ।
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आसक्त नहीं होते हुए,
मोक्ष के आकांक्षी
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आगमकार ने वैराग्यवासित इन दोनों ब्राह्मण पुत्रों के लिए निम्न विशेषण दिये हैं। १. जाइजरामच्चुभयाभिभूया - जन्मजरा मरण भय से उद्विग्न २. विहाराभिणिविट्ठचित्ता मोक्ष की ओर आकृष्ट ३. कामगुणे विरत्ता - कामगुणों से विरक्त ४. कामभोगेसु असज्झमाणाकामभोगों में अनासक्त ५. मोक्खाभिकंखी मोक्षाभिकांक्षी ६. अभिजायसड्डा
सम्पन्न ।
पुत्रों द्वारा दीक्षा की अनुमति मांगना
असासयं
इमं विहारं, बहु - अंतरायं ण य दीहमाउं । तम्हा गिहंसि ण रई लभामो, आमंतयामो चरिस्सामु मोणं ॥ ७ ॥
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श्रद्धा
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