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उत्तराध्ययन सूत्र - चौदहवां अध्ययन kakakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk मित्रों ने स्थविर मुनि से दीक्षा ग्रहण की। तप संयम के प्रभाव से छहों आयुष्य पूर्ण करके सौधर्म नामक पहले देवलोक में पद्मगुल्म नामक विमान में चार पल्योपम की स्थिति वाले देव बने। देवभव का आयुष्य पूर्ण करके वे छहों मित्र इषुकार नगर में उत्पन्न हुए - १. वसुमित्र का जीव भृगुपुरोहित हुआ २. वसुदत्त का जीव पुरोहित की पत्नी यशा हुई ३. वसुप्रिय का जीव इषुकार राजा हुआ ४. धनदत्त का जीव रानी कमलावती हुआ और ५-६. नन्ददत्त तथा नंदप्रिय के जीव भृगुपुरोहित के दो पुत्र हुए।
इन छह जीवों ने पूर्व भव में जो शुभ कर्म उपार्जित किये और उनको भोगने से बचे हुए पुण्य कर्म के प्रभाव से ये छहों पुण्यशाली जीव उच्च कुल (ब्राह्मण और क्षत्रिय) में उत्पन्न हुए।
संसार विरक्त पुरोहित पुत्रों का वर्णन . जाइ-जरा-मच्चुभयाभिभूया, बहिं विहाराभिणिविट्ठ-चित्ता। संसार-चक्कस्स विमोक्खणट्टा, दट्टण ते कामगुणे विरत्ता॥४॥
कठिन शब्दार्थ - जाइ - जन्म, जरा - बुढ़ापा, मचु - मृत्यु, भयाभिभूया - भय से अभिभूत, बहिं - बाहर (संसार से), विहाराभिणिविट्ठचित्ता - मोक्ष की ओर आकृष्ट, संसारचक्कस्स - संसार चक्र से, विमोक्खणट्ठा - विमुक्त होने के लिए, दट्टण - देखकर, कामगुणे - कामगुणों से, विरत्ता - विरक्त।
भावार्थ - जन्म, जरा और मृत्यु के भय से व्याप्त हुए संसार से बाहर अर्थात् मोक्ष में चित्त को स्थापित करने वाले वे दोनों कुमार जैन मुनियों को देख कर संसार-चक्र से छुटकारा पाने के लिए काम-भोगों से विरक्त हो गये।
पियपुत्तगा दोण्णि वि माहणस्स, सकम्मसीलस्स पुरोहियस्स। सरितु पोराणियं तत्थ जाई, तहा सुचिण्णं तव-संजमं च ॥५॥
कठिन शब्दार्थ - पियपुत्तगा - प्रिय-पुत्र, दोण्णि वि - दोनों ही, माहणस्स - ब्राह्मण के, सकम्मसीलस्स - स्व कर्म में निरत, पुरोहियस्स' - पुरोहित के, सरितु - स्मरण कर के, पोराणियं जाई - पुराने जन्म को, सुचिण्णं - सम्यक् प्रकार से आचरित, तव संजमं. - तप और संयम को।
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