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उसुयारिज णामं चोहहमं अज्झयणं
इषुकारीय नामक चौदहवाँ अध्ययन . उत्थानिका - तेरहवें अध्ययन में चित्त मुनि और ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती के (वर्णन) कथानक के द्वारा विषयभोगों की असारता एवं उसके कटु परिणामों का दिग्दर्शन कराया गया है। प्रस्तुत चौदहवें अध्ययन में राजा इषुकार, रानी कमलावती, भृगु पुरोहित, पुरोहित पत्नी यशा तथा उनके दो पुत्रइन छह पात्रों का अंतरंग जीवन दर्शन है। ये छहों जीव प्रतिबुद्ध होकर प्रव्रजित हुए थे। यह अध्ययन श्रमण संस्कृति के इस मूल सिद्धान्त का स्पष्ट उद्घोष करता है कि जब हृदय विरक्त हो जाता है तो उसकी प्रव्रज्या के लिए शरीर, उम्र, परिवार, स्वजन आदि कोई भी बाधक नहीं बन सकता है। यह अध्ययन कथात्मक होते हुए भी संवाद प्रधान है। इषुकार राजा की मुख्यता के कारण इसका नाम इषुकारीय रखा गया है। इसकी प्रथम गाथा इस प्रकार है -
देवा भवित्ताण पुरे भवम्मि, केई चुया एग-विमाणवासी। पुरे पुराणे उसुयार-णामे, खाए समिद्धे सुरलोगरम्मे॥१॥
कठिन शब्दार्थ - देवा - देव, भवित्ताण - हो कर, पुरे - पूर्व, भवम्मि - भव में, केई - कुछ जीव, चुया - च्यव कर, एगविमाणवासी - एक विमान में रहने वाले, पुराणेप्राचीन, उसुयार णामे - इषुकार नामक, खाए - विख्यात, समिद्धे - समृद्ध, सुर लोगम्मे - देवलोक के समान सुरम्य।
भावार्थ - पूर्व भव में देव हो कर एक विमान में रहने वाले अर्थात् सौधर्म नामक पहले देवलोक के पद्य गुल्म नामक विमान में रहने वाले कितनेक जीव अर्थात् छह जीव चार पल्योपम का आयुष्य पूरा होने पर वहाँ से कुछ आगे पीछे च्यव कर प्राचीन प्रसिद्ध समृद्धिवंत देवलोंक के समान रमणीय इषुकार नामक नगर में उत्पन्न हुए।
विवेचन - पूर्वभव में देव हो कर छह जीव समृद्धिशाली इषुकार नगर में उत्पन्न हुए। . सकम्मसेसेण पुराकएणं, कुलेसु दग्गेसु य ते पसूया। णिविण्ण-संसारभया जहाय, जिणिंदमग्गं सरणं पवण्णा॥२॥
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