Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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चित्तसंभूतीय - चित्त का मुक्ति गमन उपसंहार **************************************************************
कठिन शब्दार्थ - विरत्तकामो - विरक्त काम होकर, उदग्य - प्रधान, चारित तवो - चारित्र और तप, महेसी - महर्षि, अणुत्तरं - उत्कृष्ट, संजम - संयम का, पालइत्ता - पालन करके, सिद्धिगई - सिद्धि गति, गओ - प्राप्त हुआ।
भावार्थ - शब्दादि विषय-भोगों से विरक्त काम (काम-भोगों की अभिलाषा रहित) हुआ उत्कृष्ट चारित्र और तप वाला महर्षि चित्त भी सर्व श्रेष्ठ संयम का पालन कर सर्व प्रधान सिद्धिगति को प्राप्त हुआ, इस प्रकार मैं कहता हूँ॥३५॥
विवेचन - विषयासक्ति के कारण ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती मर कर सातवीं नरक में गया और चित्त मुनि कामभोगों का सर्वथा त्याग कर तप संयम की आराधना करके सर्वश्रेष्ठ मोक्ष गति को प्राप्त हुए। इस प्रकार कथन कर कामभोगों के कटु परिणाम को और धर्माचरण के शुभ परिणाम को दर्शाया गया है। शास्त्रकारों ने मुमुक्षु पुरुषों के लिए धर्म का ही आचरण सर्वश्रेष्ठ और उपादेय बतलाया है। .
॥ इति चित्त संभूतीय नामक तेरहवाँ अध्ययन समाप्त॥
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