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उत्तराध्ययन सूत्र - चौदहवां अध्ययन *aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa********* पैदा करो और ४. कामभोगों को भोगो। उनका पुत्रों द्वारा क्रमशः युक्ति युक्त समाधान दिया गया है जो इस प्रकार है - ___१. वेद मरण से रक्षा नहीं कर सकते। वास्तव में धर्माचरण ही मृत्यु से या दुर्गति से जीव की रक्षा करता है।
२. ब्राह्मणों को भोजन कराने पर भी भोजन कराने वाले को उसके पाप नरक गमन से नहीं बचा सकते हैं।
३. पुत्रोत्पत्ति नरकगामी पिता को नरक से नहीं बचा सकती।
४. भोग, इहलोक और परलोक दोनों में अनर्थों की खान है ये जन्म, जरा और मृत्यु से बचा नहीं सकते। भोग, आत्म-कल्याण में बाधक, संसार परिभ्रमण कराने वाले और मोक्ष विरोधी है। भृगु पुरोहित का कथन-श्रमण क्यों बनना चाहते हो?
धणं पभूयं सह इत्थियाहिं, सयणा तहा कामगुणा पगामा। तवं कए तप्पइ जस्स लोगो, तं सव्व-साहीण-मिहेव तुभं ॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - धणं - धन, पभूयं - प्रचुर (बहुत सा), सह - सहित, इत्थियाहिस्त्रियों के, सयणा - स्वजन, तया - तथा, पगामा - पर्याप्त, तवं - तप, तप्पड़ - करते हैं, लोगो - लोग, सव्वं - सभी, साहीणं - स्वाधीन।
भावार्थ - भृगु पुरोहित अपने पुत्रों से कहता है कि हे पुत्रो! अपने घर में यही स्त्रियों सहित बहुत सा धन है (अर्थात् अपने पास धन भी बहुत है और स्त्रियाँ भी हैं) तथा स्वजन सम्बन्धी भी बहुत हैं और शब्दादि कामगुण भी पर्याप्त है, जिन पदार्थों की प्राप्ति के लिए लोग तप जपादि करते हैं वे सभी पदार्थ तुम्हारे स्वाधीन हैं (अर्थात् सब सुख तुम को स्वतः प्राप्त हैं तो फिर संयम क्यों लेते हो?)।
कुमारों का प्रतिवाद धणेण किं धम्मधुराहिगारे, सयणेण वा कामगुणेहि चेव। समणा भविस्सामु गुणोहधारी, बहिं विहारा अभिगम्म भिक्खं॥१७॥
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