Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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इषुकारीय - छह जीवों का परिचय
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कठिन शब्दार्थ - सकम्मसेसेण - शेष कर्मों के कारण, पुराकएणं - पूर्व जन्म में कृत, कुलेसु दग्गेसु - उच्च कुलों में, पसूया - उत्पन्न हुए, णिविण्ण - उद्वेग से युक्त, संसारभया - संसार के भय से, जहाय - परित्याग कर, जिणिंदमग्गं - जिनेन्द्र मार्ग को, सरणं - शरण को, पव्वण्णा - प्राप्त हुए।
भावार्थ - पूर्वोक्त एक विमान में रहने वाले देव पूर्व जन्म में किये हुए देवगति योग्य कर्मों के फल को भोग कर शेष रहे हुए शुभ कर्मों के फल को भोगने के लिए उत्तम कुल में उत्पन्न हुए और फिर भी संसार के भय से निर्वेद को प्राप्त होते हुए काम-भोगों को छोड़ कर जिनेन्द्र भगवान् के मार्ग की शरण को प्राप्त हुए।
___ छह जीवों का परिचय पुमत्तमागम्म कुमार दो वि, पुरोहिओ तस्स जसा य पत्ती।
विसालकित्ती य तहेसुयारो, रायऽत्थ देवी कमलावई य॥३॥ .. कठिन शब्दार्थ - पुमत्तं - पुरुष रूप में, आगम्म - आकर, कुमार दो वि - दोनों कुमार, पुरोहिओ - पुरोहित, जसा - यशा, पत्ती - पत्नी, विसालकित्ती - विशाल कीर्ति वाला, इसुयारो - इषुकार, रायऽत्थ - इस भव में राजा, कमलावई - कमलावती देवी।
भावार्थ - देवलोक से चव कर वे छह जीव इस प्रकार उत्पन्न हुए - विशाल कीर्ति वाला, इषुकार नाम का राजा और उस राजा की कमलावती नाम की पटरानी तथा भृगु नाम का पुरोहित और उसकी यशा नाम की भार्या तथा इनके घर में पुरुष रूप से उत्पन्न होने वाले दो कुमार इस प्रकार वे छह जीव मनुष्य लोक में आकर इषुकार नगर में उत्पन्न हुए।
- विवेचन - नगर का नाम 'इषुकार' है इसलिए राजा का नाम भी 'इषुकार' दे दिया गया है। किन्तु ग्रन्थकार के अनुसार राजा का नाम सीमन्धर था और भृगु पुरोहित के दो पुत्रों के नाम
देवभद्र और यशोभद्र थे। ___टीकाकार के अनुसार इन छहों जीवों में से दो जीव गोवल्लभ नामक गोप के नंददत्त और नंदप्रिय के जीव थे, जो पूर्व जन्म में संयम पालन के कारण देव बने और वहाँ से च्यव कर क्षितिप्रतिष्ठित नगर के जिनदत्त श्रेष्ठी के यहाँ सहोदर भाई के रूप में उत्पन्न हुए। इसी नगर में इनकी मित्रता वसुधर श्रेष्ठी के पुत्र वसुमित्र, वसुदत्त, वसुप्रिय और धनदत्त के साथ हुई। छहों
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