Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
२३०
तस्स मे अपडिक्कंतस्स, इमं एयारिसं फलं ।
जाणमाणो वि जं धम्मं, कामभोगेसु मुच्छिओ ॥ २६ ॥
कठिन शब्दार्थ - अपडिक्कंतस्स - अप्रतिक्रान्त प्रतिक्रमण नहीं करने से, एयारिसंऐसा, फलं - फल, जाणमाणो वि - जानता हुआ भी, मुच्छिओ - मूर्च्छित ।
भावार्थ - उस निदान का प्रतिक्रमण न करने से मुझे यह इस प्रकार का फल प्राप्त हुआ है कि जो मैं धर्म को जानता हुआ भी कामम-भोगों में आसक्त बना हुआ हूँ। चक्रवर्ती ने अपनी भूल स्वीकार करते हुए मुनि से कहा कि पूर्वभव में मैंने जो निदान किया था उसी का दुष्ट परिणाम है कि अब मेरे लिए इस विषय भोगों का त्याग अत्यंत कठिन हो रहा है।
विवेचन
-
उत्तराध्ययन सूत्र - तेरहवां अध्ययन
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
Jain Education International
हाथी का दृष्टान्त
णागो जहा पंकजलावसण्णो, दट्टु थलं णाभिसमेइ तीरं ।
एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा, ण भिक्खुणो मग्गमणुव्वयामो ॥ ३० ॥ कठिन शब्दार्थ - णागो नाग
-
-
में फंसा हुआ,. थलं स्थल को, णाभिसमेइ.
-
✩✩✩✩✩✩✩✩✩✩✩✩✩
हस्ती, पंक - कीचड़ वाले, जलावसण्णो- जल मार्ग को,
प्राप्त नहीं होता, मग्गं
-
अणुव्वयामो अनुसरण करता ।
भावार्थ - जिस प्रकार कीचड़ में फंसा हुआ हाथी स्थल को देख कर भी तीर पर नहीं आ सकता इसी प्रकार शब्दादि कामगुणों में आसक्त हुआ मैं साधु के मार्ग को जानता हुआ भी उसका अनुसरण नहीं कर सकता है।
विवेचन प्रस्तुत गाथा में कामभोगों को दलदल के समान, उनमें आसक्ति रखने वालों को हस्ती के समान तथा साधुमार्ग को स्थल के सदृश बतलाया है।
दलदल में फंसा हाथी वहाँ से निकलने का प्रयत्न तो बहुत करता है और चाहता है कि कीचड़ में से निकल कर स्थल प्रदेश में चला जाऊँ किन्तु वह निकल नहीं सकता, उसी प्रकार कामभोगों में आसक्त पुरुष भी उनसे निकलने की कोशिश करते हैं परन्तु सफल मनोरथ नहीं होते ।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org