Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - बारहवां अध्ययन aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa*******
हरिकेशी मुनि के गुण इरिएसण-भासाए, उच्चार-समिइसु य। जओ आयाणणिक्खेवे, संजओ सुसमाहिओ॥२॥
कठिन शब्दार्थ - ईर्या समिति, एषणा समिति, भाषा समिति, उच्चार समिइसु - उच्चार प्रसवल खेल जल्ल सिंघाण परिस्थापनिका समिति, जओ - यत्नशील, आयाणणिक्खेवे - आदान निक्षेप, संजओ - संयमी, सुसमाहिओ - श्रेष्ठ समाधिवान्। ...
भावार्थ - मुनि ईर्यासमिति, एषणा समिति, भाषा समिति, उच्चार-प्रस्रवण-खेल-जल्लसिंघाण-परिस्थापनिका समिति और आदान-भंड-मात्र-निक्षेपणा समिति में, यतनावान् संयमवन्त श्रेष्ठ समाधि वाले थे।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में मुनि के गुणों का वर्णन करते हुए पांचों समितियों का उल्लेख किया है। पांच समिति का विशेष वर्णन उत्तराध्ययन सूत्र के चौबीसवें अध्ययन में किया जायेगा।
भिक्षार्थ गमन मणगुत्तो वयगुत्तो, कायगुत्तो जिइंदिओ। भिक्खट्ठा बंभइजम्मि, जण्णवाडमुवढिओ॥३॥
कठिन शब्दार्थ - मणगुत्तो - मन गुप्त, वयगुत्तो - वचन गुप्त, कायगुत्तो - काय .गुप्त, जिइंदिओ - जितेन्द्रिय, भिक्खट्ठा - भिक्षा के लिए, बंभइजमि - ब्राह्मणों के यज्ञ में, अण्णवाडे - यज्ञवाट में, उवडिओ - उपस्थित हुए।
भावार्थ - मन गुप्ति वाले, वचन गुप्ति वाले, काय गुप्ति वाले और इन्द्रियों को जीतने वाले वे मुनि भिक्षा के लिए ब्राह्मणों का जहाँ यज्ञ हो रहा था वहाँ यज्ञशाला में आये।
विवेचन - इन्द्रियों को सर्वथा वश में रखने वाले वे मुनि भिक्षार्थ भ्रमण करते हुए ब्राह्मणों के द्वारा संपादित होने वाले यज्ञ में उपस्थित हुए। वे मुनि मन, वचन और काया इन तीनों गुप्तियों से गुप्त थे।
भागे।
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