Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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हरिकेशीय - हरिकेश मुनि का परिचय *aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa***
हरिकेशबल मुनि ने राजा को स्पष्ट करते हुए कहा - 'मेरा कोई अपमान नहीं हुआ है। मैं संयमशील साधु हूँ। मैंने तीन करण तीन योग से मैथुन के त्याग किये हैं अतः मैं विवाह नहीं कर सकता।'
मुनि के इन वचनों को सुन कर राजा अपनी राजकुमारी के साथ निराश होकर महलों में लौट गया। ब्राह्मण को ऋषि का रूप मान कर राजकुमारी भद्रा का विवाह राजपुरोहित रुद्रदेव के साथ कर दिया।
किसी समय रुद्रदेव पुरोहित ने एक विशाल यज्ञ करवाया यज्ञशाला में अनेकों युवा वृद्ध यज्ञपाठी ब्राह्मण उपस्थित हुए और प्रचुर मात्रा में भोज्य सामग्री बनाई गयी। मुनि हरिकेशबल अपने मासखमण तप के पारणे में भिक्षा हेतु उस यज्ञ मंडप में उपस्थित हुए। मुनि का ब्राह्मणों के साथ जो वार्तालाप हुआ उसी का दिग्दर्शन इस बारहवें अध्ययन में कराया गया है जो कि बहुत ही रोचक एवं शिक्षाप्रद है। यथा -
हरिकेश मुनि का परिचय सोवाग-कुल संभूओ, गुणुत्तरधरो मुणी। . हरिएस-बलो णाम, आसी भिक्खू जिइंदिओ॥१॥
कठिन शब्दार्थ - सोवागकुल - श्वपाक - चांडाल कुल में, संभूओ - उत्पन्न हुआ, गुणुत्तरधरो- प्रधान गुणों का धारक, मुणी - मुनि, हरिएस-बलो - हरिकेश बल, आसि - हुआ, भिक्खू - भिक्षु, जिइंदिओ - जितेन्द्रिय।। - भावार्थ - श्वपाक (जो कुत्ते के मांस को भी खा जाय ऐसे) चाण्डाल कुल में उत्पन्न हुए, ज्ञानादि उत्तम गुणों के धारक भिक्षा से निर्वाह करने वाले पांच इन्द्रियों को जीतने वाले हरिकेश बल नाम वाले एक मुनि थे अर्थात् उनके हरिकेशी और बल ये दो नाम थे, किन्तु वे हरिकेशी नाम से ही प्रसिद्ध थे।
विवेचन - हरिकेशी का जन्म चाण्डाल कुल में हुआ था, अतः वे जाति के चाण्डाल थे। 'हरिकेश' उनका गोत्र था और 'बल' नाम था। - इस गाथा से स्पष्ट है कि नीच कुल में उत्पन्न होने पर भी गुणों की विशिष्टता से यह आत्मा उच्च कुल वालों का पूजनीय हो सकता है।
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