Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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हरिकेशीय - मुनि का समाधान ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
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मुनि का समाधान छज्जीवकाए असमारभंता, मोसं अदत्तं च असेवमाणा। परिग्गहं इथिओ माण-मायं, एयं परिणाय चरंति दंता॥४१॥
कठिन शब्दार्थ - छजीवकाए - छह जीव काय के जीवों का, असमारंभता - समारम्भ नहीं करते, मोसं - मृषावाद, अदत्तं - चोरी का, असेवमाणा - सेवन नहीं करते हुए, परिग्गहं - परिग्रह को, इथिओ - स्त्रियाँ, परिण्णाय - जान कर, दंता - इन्द्रियों का करने वाले।
. . ___ भावार्थ - इन्द्रियों का दमन करने वाले महात्मा, षड्जीवनिकाय की हिंसा नहीं करते हुए और झूठ तथा अदत्तादान का सेवन नहीं करते हुए परिग्रह स्त्रियाँ मान, माया, क्रोध और लोभ इन्हें ज्ञ परिज्ञा से जान कर तथा प्रत्याख्यान परिज्ञा से त्याग कर प्रवृत्ति करते हैं। इसी प्रकार
आप लोगों को भी प्रवृत्ति करनी चाहिये। ... सुसंवुडो पंचहिं संवरेहिं, इह जीवियं अणवकंखमाणो। ...
वोसट्ठ-काओ सुइ-चत्तदेहो, महाजयं जयइ जण्णसिटुं॥४२॥
कठिन शब्दार्थ - सुसंवुडो - सुसंवृत, पंचहिं - पांच, संवरेहिं - संवरों से, अणवकंखमाणो - आकांक्षा नहीं करते हुए, वोसट्ठकाओ - व्युत्सृष्ट काय - शरीर की आसक्ति का त्याग कर चुका है, सुइचत्तदेहो - शुचित्यक्तदेहाः शुचि, देहासक्ति का त्यागी, महाजयं - कर्म शत्रुओं पर विजय पाने वाले, जण्ण - यज्ञ, सिटुं - श्रेष्ठ।
भावार्थ - पांच संवर द्वारा भलीभांति आस्रव का निरोध करने वाला, यहाँ मनुष्य जीवन में असंयमी जीवन नहीं चाहने वाला, शरीर का त्याग किया हुआ अर्थात् शरीर की परवाह न करके परीषह (उपसर्ग) सहने वाला, निर्मल व्रत वाला, शरीर का त्याग करने वाला अर्थात् शरीर पर ममत्व न रखने वाला महात्मा महान् जय वाले, श्रेष्ठ यज्ञ का अनुष्ठान करता है।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में श्रेष्ठ यज्ञ की विधि करने वालों का कथन किया गया है। मुनि फरमाते हैं कि जिन पुरुषों ने संवर द्वारा हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन और परिग्रह रूप आम्रवों का निरोध किया है, जो इस जन्म में असंयत जीवन जीने की इच्छा नहीं रखते हैं, शीतोष्ण आदि परीषहों को सहन करने के लिए जिन्होंने शरीर के ममत्व का त्याग कर दिया है, जो कषायों के त्याग और व्रतों के पालन से पवित्र हो रहे हैं तथा देहादि के लिए किसी प्रकार का
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