Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - तेरहवां अध्ययन
मुनि द्वारा भोगों को छोड़ने का उपदेश सव्वं विलवियं गीयं, सव्वं णटुं विडंबियं। सव्वे आभरणा भारा, सव्वे कामा दुहावहा॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - सव्वं - सर्व, विलवियं - विलाप रूप, गीयं - गीत, पढें - नाटक, विडंबियं - विडम्बना, आभरणा - आभरण - आभूषण, भारा - भार रूप, कामाकामभोग, दुहावहा - दुःखावहा - दुःखों के देने वाले।
भावार्थ - हे राजन्! सभी गीत विलाप रूप हैं। सभी नाट्य-नृत्य विडम्बना है। सभी आभूषण भार रूप हैं और सभी पांच इन्द्रियों के मनोज्ञ विषय दुःख प्राप्त कराने वाले हैं।
विषयजन्य सुख की लघुता बालाभिरामेसु दुहावहेसु, ण तं सुहं कामगुणेसु रायं। विरत्तकामाण तवोधणाणं, जं भिक्खूणं सीलगुणे रयाणं॥१७॥
कठिन शब्दार्थ - बालाभिरामेसु - बाल जीवों को प्रिय लगने वाले, दुहावहेसु - दुःखों के देने वाले, ण तं सुहं- वह सुख नहीं, विरत्तकामाण - कामभोगों से विरक्त, तवोधणाणं- तपोधनों को, सीलगुणे - शील गुणों में, रयाणं - रत। .
भावार्थ - हे राजन्! बाल-अज्ञानी जीवों को प्रिय लगने वाले किन्तु अन्त में दुःख प्राप्त कराने वाले मनोज्ञ शब्दादि काम-गुणों में वह सुख नहीं है जो काम-भोगों से विरक्त शील और गुण में रत रहने वाले तप रूप धन वाले भिक्षुओं को होता है। .
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में त्यागशील और मननशील साधु पुरुषों और विषयजन्य सुख की लालसा रखने वाले संसारी पुरुषों के सुख में जो अन्तर है उसका दिग्दर्शन कराया गया है।
णरिंद! जाई अहमा णराणं, सोवागजाई दुहओ गयाणं। जहिं वयं सव्वजणस्स वेस्सा, वसीअ सोवाग णिवेसणेसु॥१८॥
कठिन शब्दार्थ - णरिंदे - हे नरेन्द्र!, अहमा - अधम, णराणं - नरों में, सोवागजाईश्वपाक - चांडाल जाति में, दुहओ - दोनों, गयाणं - गये, जहिं - जहां पर, वयं - हम, .सव्वजणस्स - सर्वजन को, वेस्सा - द्वेष के कारण, वसीअ - बसे, सोवाग णिवेसणेसु - श्वपाक - चांडाल के घर में।
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