________________
२२०
कठिन शब्दार्थ- दासा णगे कालिंजर पर्वत पर, हंसा चांडाल, कासिभूमिए - काशी भूमि में ।
भावार्थ - दशार्ण देश में अपन दोनों दास थे, दूसरे भव में कालिंजर पर्वत पर मृग थे । तीसरे भव में मृतगंगा नदी के तीर पर हंस थे, चौथे भव में काशी देश में चांडाल थे। देवाय देवलोगम्मि, आसी अम्हे महिड्डिया ।
इमा णो छट्टिया जाई, अण्णमण्णेण जा विणा ॥७॥
कठिन शब्दार्थ - देवलोगम्मि - देवलोक में, छट्टिया - छठी, जाई - जाति (जन्म), एक दूसरे के स्नेह से, विणा - रहित ।
अण्णमण
भावार्थ - पांचवें भव में अपन दोनों सौधर्म देवलोक में महाऋद्धि सम्पन्न देव थे और
उत्तराध्ययन सूत्र - तेरहवां अध्ययन
*****
दासपुत्र, दसणे - दर्शाण देश में, मिया मृग, कालिंजरे हंस, मयंगतीराए - मृत गंगा के किनारे, सोवागा
·
यह अपनी छठी जाति (भव) है जो एक दूसरे से पृथक् उत्पन्न हुए हैं।
कम्मा णियाण - पगडा, तुमे राय ! विचिंतिया ।
तेसिं फलविवागेण, विप्पओग-मुवागया॥८॥
-
कठिन शब्दार्थ - कम्मा कर्मों का, णियाणप्पगडा - निदान रूपकृत, विचिंतिया विशेष रूप से चिंतन किया, फलविवागेण वियोग को,
फल विपाक से, विप्पओगं
उवागया
Jain Education International
-
प्राप्त हुए ।
-
भावार्थ - चक्रवर्ती का उक्त कथन सुन कर मुनि ने कहा हे राजन्! आपने निदान के वश होकर आर्त्तध्यानादि युक्त कर्मों का चिन्तन किया था उन्हीं कर्मों के फल के उदय आने से हम वियोग को प्राप्त हुए हैं।
-
विवेचन - मुनि ने राजा से कहा- तुमने भोगादि की आशा से निदान पूर्वक कर्म किया और उसके लिए आर्त्तध्यानादि का विशेष रूप से चिंतन किया अतः उन्हीं कर्मों के फल विपाक से तेरा और मेरा इस छठे भाव में वियोग हो गया ।
• जिसके द्वारा तप आदि क्रियाएं खंडित हो उसे निदान कहते हैं- “नितरां दीयंते खंडयन्ते तपः प्रभृतीन्यनेनेति निदानम्” । अब चक्रवर्ती पुनः पूछता है -
सच्च- सोयप्पगडा, कम्मा मए पुरा कडा ।
ते अज्ज परिभुंजामो, किण्णु चित्ते वि से तहा ॥६॥
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org