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उत्तराध्ययन सूत्र - बारहवां अध्ययन ************************************************************* मुंही के समान निर्विष होता तो मेरा कोई भी अनादर नहीं करता। इस प्रकार सोचते-सोचते उसे जाति स्मरण ज्ञान हो गया। पूर्व जन्मों की स्मृति जागृत होते ही उसने जाति मद आदि के फल श्रमण जीवन की उत्तम साधना और देवोचित सुखों की विनश्वरता का चिंतन किया और संसार को तुच्छ समझ कर वैराग्यपूर्वक संयम अंगीकार कर लिया। .. चांडाल कुलोत्पन्न हरिकेशबल श्रमण बन गए और दीक्षा लेते ही तप संयम में लीन हो गए। उग्र तपश्चरण के कारण उन्होंने शरीर को ही नहीं कषायों को भी कुश कर लिया।
किसी समय वे वाराणसी नगर पहुंचे और वहाँ पर किसी उद्यान में रुके। उसी उद्यान में तिंदुक वृक्ष पर रहा हुआ एक यक्ष मुनि की तप साधना से अत्यंत प्रभावित हुआ और वह उनकी सेवा उपासना करने लगा। एक बार वाराणसी नरेश कौशलिक की पुत्री भद्रा अपने दास दासियों सहित उस उद्यान में यक्ष पूजन हेतु आयी। वहाँ उसने शरीर से वीभत्स एवं मलिन वस्त्र युक्त मुनि को देखा तो वह मुनि की कृश देह कुरूपता से घृणा करने लगी और उसने मुनि पर थूक दिया। ___ महान् तपोधनी मुनि का राजकुमारी द्वारा किया गया यह अपमान यक्ष सहन नहीं कर सका। मुनि तो अपनी साधना में लीन थे किन्तु यक्ष ने राजकुमारी को यथा योग्य शिक्षा देने के लिए और मुनिप्रवर के अपमान का बदला लेने के लिए राजकुमारी को रुग्ण बना दिया और अपनी दैविक शक्ति के द्वारा दास-दासियों सहित उद्यान से उठा कर राजमहल में ले जा कर पटक दिया। पूरे राजमहल में कोलाहल मच गया। राजकुमारी की ऐसी दशा देख कर सम्पूर्ण अंतःपुर ही नहीं स्वयं राजा भी अत्यंत चिंतित हो उठा। अनेक वैद्यों को बुलाकर उपचार कराया गया। किन्तु सब कुछ निरर्थक सिद्ध हुआ। अंत में यक्ष स्वयं राजकुमारी के शरीर में प्रवेश कर कहने लगा इन कन्या ने मेरे यक्षायतन में ठहरे हुए संयमशील महातपस्वी मुनि का घोर अपमान किया है अतः मैंने इसकी यह दशा की है। अब तो मैं इसे तब ही रोग मुक्त करूँगा जब यह उस मुनि से विवाह की स्वीकृति दे।
राजा और राजकुमारी ने यक्ष की बात स्वीकार की तो राजकुमारी को पूर्व की तरह स्वस्थ बना कर यक्ष चला गया। राजा अपने पूरे ऐश्वर्य के साथ राजकुमारी को साथ लेकर यक्षायतन में उस तपोधनी महाश्रमण की सेवा में उपस्थित हुआ। मुनि से क्षमायाचना करते हुए राजा ने कहा - 'हे मुने! मैं अपनी कन्या के अपराध की आपसे क्षमा मांगता हूँ। आप इस अबोध बाला को क्षमा करें और इसके साथ विवाह करके हमें कृतार्थ करें।'
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