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उत्तराध्ययन सूत्र - बारहवां अध्ययन ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ Addddddddkakakkkkkkkkkkk★★★★
कठिन शब्दार्थ :- उवक्खडं - उपष्कृत - संस्कारित किया हुआ, भोयण - भोजन, माहणाणं - ब्राह्मणों के लिए, असडिवं - आत्मार्थक - अपने लिए ही, सिद्धं - पकाया (बनाया) गया, इह - इस, एगपक्खं - एक पक्ष का, एरिसं - इस प्रकार का, अण्णपाणंअन्नपान, तुझं - तुम को, किं - क्यों, ठिओसि - खड़ा है।
भावार्थ - मसाले आदि से उत्तम रीति से संस्कार किया गया, यह भोजन ब्राह्मणों के अपने लिए ही तैयार हुआ है और यहाँ यज्ञ में ब्राह्मण रूप एक पक्ष वाला है अर्थात् यहाँ जो तैयार किया जाता है वह ब्राह्मणों के सिवाय किसी दूसरे को नहीं दिया जाता, इस प्रकार के अन्न-पानी को हम लोग तुझे नहीं देंगे, फिर यहाँ क्यों खड़ा है?
थलेसु बीयाई वर्वति कासया, तहेव णिण्णेसु य आससाए। एयाइ सद्धाइ दलाह मझं, आराहए पुण्णमिणं ख खितं ॥१२॥
कठिन शब्दार्थ - थलेसु - स्थलों में, बीयाई- बीजों को, ववंति - बोते हैं, कासया - किसान, णिण्णेसु - नीचे स्थलों (खेतों) में, आससाए - आशा से, सखाए - श्रद्धा से, दलाह - देदो, मज्झं - मुझे, आराहए - आराधन कर लो, पुण्णं - पुण्य रूप, खित्तं - क्षेत्र को। ___भावार्थ - किसान लोग आशंसा से स्थल (ऊंची भूमि पर) और इसी प्रकार नीची भूमि पर बीज बोते हैं। अर्थात् किसान ऊंची और नीची दोनों भूमि में इस आशा से बीज बोते हैं कि यदि अधिक वर्षा हुई तो ऊंची भूमि पर और कम वर्षा हुई तो नीची पृथ्वी पर लाभ होगा। अर्थात् दो में से एक स्थान पर तो अवश्य खेती सफल होगी, इसी श्रद्धा से आप लोग मुझे दो यह क्षेत्र निश्चय ही पुण्य की प्राप्ति करावेगा अर्थात् मुझे दान देने से निश्चय ही आप को पुण्य की प्राप्ति होगी।
विवेचन - ब्राह्मणों के उत्तर को सुन कर यक्ष कटाक्ष रूप से बोला - जैसे किसान फल की आशा से स्थल और निम्न स्थानों में मूंग आदि धान्य के बीजों का वपन करते हैं क्योंकि यदि वर्षा समय पर अच्छी हो गई तब तो स्थल में धान्योत्पत्ति हो जायेगी और यदि कम हुई तो निम्न स्थानों में बोए हुए बीज फल दे जावेंगे। तात्पर्य यह है कि किसान की दोनों ही प्रकार की आशा रहती है इसी प्रकार आप भी मुझे इसी आशा और श्रद्धा से भिक्षा दो।
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