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उत्तराध्ययन सूत्र - बारहवां अध्ययन
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भद्रा राजकुमारी का प्रयास रण्णो तहिं कोसलियस्स धूया, भद्दत्ति णामेण अणिंदियंगी। तं पासिया संजय हम्ममाणं, कुद्धे कुमारे परिणिव्ववेइ॥२०॥
कठिन शब्दार्थ - रण्णो - राजा, कोसलियस्स - कौशलिक की, धूया - पुत्री, अणिंदियंगी - सुंदर अंगों वाली - अनिन्ध सुंदरी, संजयं - संयमी को, हम्ममाणं - मारते हुए, कुद्धे - कुपित हुए, परिणिव्ववेइ - सर्व प्रकार से शांत करने लगी।
भावार्थ - वहाँ उस साधु को मारते हुए देख कर भद्रा नाम वाली अनिन्दितांगी (सुन्दर अंग वाली) कोशल देश के राजा की पुत्री कुपित हुए उन कुमारों को शांत करने लगी।
मुनि का तपोबल माहात्म्य देवाभिओगेण णिओइएणं, दिण्णा मु रण्णा मणसा ण झाया। णरिंद देविंदऽभिवंदिएणं, जेणामि वंता इसिणा स एसो॥२१॥
कठिन शब्दार्थ - देवाभिओगेण - देवता के अभियोग से, णिओइएणं - प्रेरणा से, दिण्णा मु - मैं दी गई थी, मणसा - मन से भी, ण झाया - इच्छा नहीं की, णरिंद - राजा, देविंद - इन्द्र के, अभिवंदिएणं - वंदनीय, जेण - जिन, वंता - त्याग दिया, इसिणा - ऋषि ने।
भावार्थ - देव के अभियोग से प्रेरित हुए कोशल देश के राजा द्वारा मैं इन मुनि को दी गई थी, किन्तु इन मुनि ने मुझे मन से भी नहीं चाहा। नरेन्द्र और देवेन्द्र से नमस्कार किये गये जिन ऋषि द्वारा मैं त्यागी गई थी वे ये ही मुनिराज हैं।
विवेचन - राजकुमारी भद्रा के कहने का अभिप्राय यह है कि आप लोग इस मुनि का इस प्रकार से जो अपमान कर रहे हो वह सर्वथा अयोग्य है। जिसने मेरी जैसी सुन्दरी को अति तुच्छ समझ कर त्यागते हुए अपनी संयमनिष्ठा की दृढ़ता का प्रत्यक्ष परिचय दिया हो ऐसे निस्पृह और शांत महात्मा की आशातना करना इससे अधिक और कौनसा जघन्य काम है अतः इस मुनि का अपमान करने के बदले इनकी अधिक से अधिक सेवा भक्ति करनी चाहिये।
एसो हु सो उग्गतवो महप्पा, जिइंदिओ संजओ बंभयारी। जो में तया णेच्छइ दिजमाणिं, पिउणा सयं कोसलिएण रण्णा॥२२॥
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