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हरिकेशीय - छात्रों की दर्दशा का वर्णन
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विवेचन - भद्रा ने कहा कि यह मुनि आशीविष लब्धि से युक्त है अर्थात् जैसे आशीविष नाम का सर्प महा भयंकर होता है उसी प्रकार ये महर्षि भी लब्धि संपन्न होने से शाप देने और अनुग्रह करने में समर्थ है। घोर व्रतों के आचरण करने वाले घोर, पराक्रम शाली, महातपस्वी महान् पुण्य के उदय से भिक्षा के लिए यहां उपस्थित हुए हैं। अतः इन्हें भिक्षा देने के स्थान पर तुम इन्हें मार रहे हो। तुम्हारा यह प्रयास ठीक वैसा ही है जैसा कि पतंगों की सेना का अग्नि में कूद कर उसको बुझाने के लिए प्रयास करना अर्थात् जिस प्रकार पतंगे अग्नि में गिर कर उसको बुझाने के बदले स्वयं ही जल जाते हैं उसी प्रकार आप लोग भी मुनि को क्या मारोगे, आप स्वयं नष्ट हो जाओगे।
सीसेण एवं सरणं उवेह, समागया सव्वजणेण तुब्भे।
जइ इच्छह जीवियं वा धणं वा, लोगं वि एसो कुविओ डहेजा॥२८॥ - कठिन शब्दार्थ - सीसेण - मस्तक से, सरणं - शरण, उवेह - ग्रहण करो, समागयाइकट्ठे होकर, सव्वजणेण - सब लोगों के साथ, इच्छह - चाहते हो, जीवियं - जीवन, धणं - धन, कुविओ - कुपित होने पर, डहेजा - जलाने में समर्थ है।
भावार्थ - यदि तुम जीवन अथवा धन चाहते हो तो सभी मनुष्यों के साथ आये हुए वे सब मिल कर मस्तक झुका कर प्रणाम करते हुए इनकी शरण ग्रहण करो, क्योंकि कुपित हुआ यह महर्षि लोक को भी जला सकता है।
विवेचन - भद्रा के उपर्युक्त कथन का रहस्य यह है कि यह मुनि शांति का अगाध समुद्र है, परम निस्पृही है अतः इसकी शरण में जाने से तुम्हारे जीवन और धन की रक्षा होने के अलावा तुमको परम शांति और अभीष्ट सिद्धि का भी लाभ होगा।
___ छात्रों की दुर्दशा का वर्णन अवहेडिय-पिट्ठिसउत्तमंगे, पसारिया बाहू अकम्मचिठे। णिब्भेरियच्छे रुहिरं वमंते, उड़े मुहे णिग्गय जीहणेत्ते॥२६॥ ते पासिया खंडिय कट्ठभूए, विमणो विसण्णो अह माहणो सो। इसिं पसाएइ सभारियाओ, हीलं च जिंदं च खमाह भंते! ॥३०॥ कठिन शब्दार्थ - अवहेडिय - नीचे गिरा हुआ, पिट्टि - पीठ पर्यन्त, सउत्तमंगे -
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