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उत्तराध्ययन सूत्र - बारहवां अध्ययन ★★akkakakakakakakakakakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
भावार्थ - हे महाभाग! आपकी हम पूजा करते हैं आपकी कोई भी वस्तु (चरण-रज तक) ऐसी नहीं है जिसे हम न पूजते हों। हे भगवन्! नाना प्रकार के व्यंजनों से युक्त शालि से बना हुआ भात का आप भोजन कीजिये।
इमं च मे अत्थि पभूयमण्णं, तं भुंजसु अम्ह अणुग्गहट्ठा। बाढं त्ति पडिच्छइ भत्त-पाणं, मासस्स उ पारणए महप्पा॥३५॥
कठिन शब्दार्थ - पभूयं - प्रभूत (प्रचुर), अण्णं - अन्न, भुंजसु - भोजन करिये, अणुग्गहट्ठा - अनुग्रहार्थ, बाढं - स्वीकार है, पडिच्छइ - ग्रहण करता है, भत्तपाणं - आहार पानी को, मासस्स - मासखमण के, पारणए - पारणे में, महप्पा - महात्मा।
भावार्थ - यह सामने मेरा बहुत-सा भोजन है। हम पर अनुग्रह करने के लिए इसका आप भोजन कीजिये। ब्राह्मण के यह कहने पर वे महात्मा 'ठीक है' इस प्रकार कह कर मासखमण तप के पारणे में वे आहार-पानी ग्रहण करते हैं।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में सोमदेव की प्रार्थना पर हरिकेश बल मुनि. द्वारा भिक्षा ग्रहण . करने का उल्लेख किया गया है।
आहार दान का प्रभाव तहियं गंधोदय-पुप्फवासं, दिव्वा तहिं वसुहारा य वुट्ठा। पहयाओ दुंदुहीओ सुरेहि, आगासे अहोदाणं च घुटुं॥३६॥
कठिन शब्दार्थ - तहियं - उस समय, गंधोदय - गन्धोदक, पुप्फवासं - पुष्पों की वर्षा, दिव्वा - प्रधान, तहिं - वहाँ, वसुहारा - द्रव्य की, वुट्टा - वर्षा हुई, पहयाओ - बजाई, दुंदुहीओ - दुंदुभियाँ, सुरेहिं - देवों ने, आगासे - आकाश में, अहोदाणं- अहोदान का, घुटुं - घोष किया।
भावार्थ - उस समय मुनि के आहार लेने पर देवों ने सुगन्धित जल और पुष्पों की वर्षा की और वहाँ देवों ने दिव्य (श्रेष्ठ) धन की धाराबद्ध वर्षा की देवों ने दुंदुभियाँ तथा अन्य बाजे बजाये और उन्होंने आकाश में 'अहो दान! अहो दान! आश्चर्यकारी दान!' इस प्रकार घोषणा
की।
विवेचन - सुपात्रदान के प्रभाव से देवों द्वारा पंच दिव्यों का प्रकटीकरण किया गया।
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