Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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हरिकेशीय
आहारग्रहण की प्रार्थना
कठिन शब्दार्थ - पुव्विं - पहले, इण्हिं - अब, अणागयं अनागत, मन में द्वेष, वेयावडियं - वैयावृत्य (सेवा), णिहया - प्रताड़ित किये गये हैं ।
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भावार्थ - मुनि कहने लगे- पहले और इस समय तथा आगे भविष्य में किसी प्रकार का मेरे मन में द्वेष नहीं था, न अभी है और न आगे होगा किन्तु यक्ष मेरी वैयावृत्य करता है। इसी से उसी के द्वारा ये कुमार मारे गये हैं एवं काठ के समान निश्चेष्ट किये गये हैं।
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विवेचन - मुनि ने ब्राह्मणों से कहा मैं तो शत्रु और मित्र दोनों पर समभाव रखने वाला हूँ। अतः मैंने इन कुमारों का किसी प्रकार का अनिष्ट नहीं किया, किन्तु मेरी सेवा में रहने वाले यक्ष का यह कोप अवश्य है और उसी के द्वारा कुमारों की यह दशा हुई है। इस प्रकार मुनि ने ब्राह्मणों की शंका का समाधान किया ।
अत्थं च धम्मं च वियाणमाणा, तुम्भे ण वि कुप्पह भूइपण्णा ।
भं तु पाए सरणं वेमो, समागया सव्वजणेण अम्हे ॥३३॥
कठिन शब्दार्थ - अत्थं - अर्थ को, धम्मं - धर्म को, वियाणमाणा - यथार्थ रूप से जानने वाले भूइपण्णा - भूतिप्रज्ञ - रक्षा करने की बुद्धि से युक्त, अम्हे हम, पाए चरणों में, उवेमो - ग्रहण करते हैं।
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आहारग्रहण की प्रार्थना
• अच्चिमो ते महाभाग, ण ते किंचि ण अविमो । भुंजाहि सालिमं कूरं, णाणावंजण-संजुयं ॥ ३४ ॥ कठिन शब्दार्थ - अच्चिमो पूजा (अर्चना करते हैं, ण अच्चिमो हो, भुंजाहि - भोजन करिये, सालिमं कूरं - शालिमय चावलों का, प्रकार के व्यंजनों से, संजुयं - संयुक्त ।
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मणप्पओसो
भावार्थ ब्राह्मण कहने लगे - शास्त्रों के अर्थ और धर्म को जानते हुए मंगलकारी प्रज्ञा वाले आप कभी कुपित नहीं होते। अतएव हम सभी लोग मिल कर आप ही के चरणों की • शरण में आये हैं।
विवेचन - अध्यापकों ने मुनि चरणों में शरण पाने की इच्छा से कहा कि - 'आप सब का कल्याण चाहते हैं, किसी का विनाश नहीं, आप में सब के लिए रक्षा की बुद्धि है अतः हम सब मिल कर आप की शरण में आये हैं।'
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अर्चन योग्य न
णाणावंजण - नाना
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