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हरिकेशीय - यक्ष द्वारा कुमारों की दुर्दशा xxkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
कठिन शब्दार्थ - उग्गतवो - उग्र तप वाला, महप्पा - महात्मा, णेच्छइ - नहीं चाहते, दिजमाणिं - दी हुई को, पिउणा - पिता द्वारा, सयं - स्वयं।
भावार्थ - ये वे ही उग्र तप करने वाले जितेन्द्रिय संयत (संयति), ब्रह्मचारी महात्मा हैं, जिन्होंने उन समय स्वयं कोशल देश के राजा मेरे पिताजी द्वारा दी जाती हुई मुझे अंगीकार नहीं की एवं मन से भी चाहना न की।
महाजसो एस महाणुभागो, घोरव्वओ घोर-परक्कमो य। मा एयं हीलेह अहीलणिजं, मा सव्वे तेएण भे णिद्दहिजा॥२३॥
कठिन शब्दार्थ - महाजसो - महान् यश वाला, महाणुभागो - महाप्रभावशाली, घोरव्वओ - घोर व्रत वाला, य - और, घोरपरक्कमो - घोर पराक्रम वाला, हीलेह - हीलना करो, अहीलणिजं - अहीलनीय - हीलना के योग्य नहीं, तेएण - तेज से, मा णिहहिजा - भस्म न कर दें।
भावार्थ - ये घोर. व्रत वाले विषय कषाय आदि जीतने के लिए घोर पराक्रम करने वाले महायशस्वी और महा प्रभावशाली महात्मा हैं। ये हीलना करने योग्य नहीं हैं, इनकी अवहेलना मत करो, कहीं ये आप सभी को अपने तेज से भस्म न कर दें।
एयाइं तीसे वयणाई सुच्चा, पत्तीइ भद्दाइ सुभासियाई। इसिस्स वेयावडियट्टयाए, जक्खा कुमारे विणिवारयति॥२४॥
कठिन शब्दार्थ - पत्तीइ - पत्नी, सुभासियाई - सुभाषित, वेयावडियट्टयाए - वैयावृत्य करने के लिए, विणिवारयंति - रोकने लगे। - भावार्थ - यज्ञशाला के अधिपति की पत्नी उस भद्रा के इन सुभाषित वचनों को सुन कर ऋषि की वैयावृत्य करने के लिए यक्ष उन ब्राह्मण कुमारों को रोकने लगे।
यक्ष द्वारा कुमारों की दुर्दशा ते घोररूवा ठिय अंतलिक्खे, असुरा तहिं तं जणं तालयंति।
ते भिण्णदेहे रुहिरं वमंते, पासित्तु भद्दा इणमाहु भुजो॥२५॥ - कठिन शब्दार्थ -घोररूवा - भयानक रूप वाले, ठिय - 'स्थिति, अंतलिक्खे -. अन्तरिक्ष (आकाश) में, असुरा - असुर भारापन्न, जणं - जनों को, भिण्णदेहे - भिन्न शरीर
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