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हरिकेशीय - छात्रों द्वारा तांडव
विवेचन - जैसे मधु घृत आदि पदार्थ किसी सुंदर और स्वच्छ पात्र में डाले हुए ही सुरक्षित और अपने रूप में रह सकते हैं। उसी प्रकार सुपात्र को दिया हुआ दान ही फलीभूत होता है, कुपात्र को नहीं। जो साधु पांच समितियों से समित, तीन गुप्तियों से गुप्त तथा इन्द्रियों का निग्रह करने वाला है वही सुपात्र है। यक्ष ने उन छात्रों को कहा कि मैं सुपात्र के गुणों से युक्त हूँ और तुम यज्ञ कर रहे हो अतः सुपात्र को दान दे कर ही तुम इस आरंभ से किये हुए यज्ञ को सफल कर लो।
के इत्थ खत्ता उवजोइया वा, अज्झावया वा सह खंडिएहिं। एयं खु दंडेण फलेण हंता, कंठम्मि चित्तूण खलिज जो णं॥१८॥
कठिन शब्दार्थ - के - कौन, इत्थ - यहाँ पर, खत्ता - क्षत्रिय, उवजोइया - उपज्योतिष्क-अग्नि के पास रहने वाले, अज्झावया - अध्यापक, सह - साथ, खंडिएहिं - छात्रों के, दंडेण - दण्ड (डंडे) से, फलेण - फल से अथवा काष्ठ के पहिये से, हंता - मार कर, कंठम्मि - कंठ से, चित्तूण - पकड़ कर, खलिज - निकाल दो।
भावार्थ - उपरोक्त बात सुन कर यज्ञ के प्रधान अध्यापक ने कहा यहाँ कोई क्षत्रिय अथवा अग्नि के पास रहने वाले छात्रों सहित, कोई अध्यापक है, यदि कोई हो तो इस साधु को डंडे से और फल से अथवा मुष्टि प्रहार से मार कर तथा कंठ पकड़ कर बाहर निकाल दो।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा से यह स्पष्ट होता है कि क्रोध के वशीभूत होकर योग्य मनुष्य भी अयोग्य काम करने को उद्यत हो जाता है।
- छात्रों द्वारा ताइव अज्झावयाणं वयणं सुणित्ता, उद्धाइया साथ बहू कुमारा। .. दंडेहिं वित्तेहिं कसेहिं चेव, समागया तं इसिं तालयंति॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - उद्धाइया - दौड़ते हुए, दंडेहिं - डंडों से, वित्तेहिं - बैंतों से, कसेहिं - कसों (चाबुकों) से, समागया - आए, तं - उस, इसिं - मुनि को, तालयंति - पीटने लगे। __. भावार्थ - अध्यापक का वचन सुन कर बहुत-से कुमार वहाँ तेजी से दौड़ आये और आये हुए वे सभी मिल कर उस मुनि को डंडों से बेंतों से और चाबुकों से मारने लगे।
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