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उत्तराध्ययन सूत्र - बारहवां अध्ययन *****************************************kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
भावार्थ - अरे! तुम लोग यहाँ शब्दों के (वेद वचनों के) भार ढोने वाले हो, क्योंकि वेद पढ़ कर भी तुम उनका अर्थ नहीं जानते हो। मुनि लोग भिक्षा के लिए ऊंच-नीच कुलों में भ्रमण करते हैं, वे ही अर्थात् पंच महाव्रतधारी मुनि ही सुन्दर (शोभनीय) क्षेत्र (दान के पात्र) हैं।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में स्पष्ट किया गया है कि जो लोग केवल शास्त्रों का पाठ मात्र रट लेते हैं और उनके अर्थों का विचार नहीं करते, वे लोग वास्तव में शास्त्रज्ञ नहीं होते।
अज्झावयाणं पडिकूल-भासी, पभाससे किण्णु सगासि अम्हं। अवि एवं विणस्सउ अण्णपाणं, ण य णं दाहामु तुम णियंठा!॥१६॥
कठिन शब्दार्थ -, अज्झावयाणं - अध्यापकों के, पडिकूलभासी - प्रतिकूल बोलने वाले, पभाससे - बोलता है, सगासि - सामने, विणस्सउ - विनष्ट हो जाए, दाहामु - देंगे, णियंठा - हे निर्ग्रन्थ!
भावार्थ - यक्ष के उक्त बचन सुनकर छात्र कहने लगे - अध्यापकों के विरुद्ध बोलने वाले तुम हम लोगों के सामने यह क्या असह्य बात कर रहे हो, भले ही यह आहार-पानी नष्ट - हो जाय किन्तु हे निर्ग्रन्थ! इसे तुझे कभी नहीं देंगे।
- विवेचन - इस गाथा में अन्य प्रतिपाद्य विषय के साथ इस भाव को भी व्यक्त किया गया है कि प्रतिकूल बोलने वाले को अपने अभिलषित कार्य में सफलता प्राप्त नहीं होती। मुनि के प्रतिकूल भाषण को सुन कर उससे उत्तेजित हो, वे याज्ञिक बोले - 'हे निर्ग्रन्थ! अन्नादि पदार्थ सड़ जावें - नष्ट हो जावें परन्तु तुमको नहीं देंगे।'
समिईहिं मज्झं सुसमाहियस्स, गुत्तीहि गुत्तस्स जिइंदियस्स।. ... . __जइ मे ण दाहित्थ अहेसणिजं, किमज जण्णाण लहित्थ लाह?॥१७॥
कठिन शब्दार्थ - समिईहिं - समितियों से युक्त, मज्झं - मुझ, सुसमाहियस्स - सुंदर समाधि वाले, गुत्तीहि - गुप्तियों से, गुत्तस्स - गुप्त, जिइंदियस्स - जितेन्द्रिय को, ण दाहित्थ - नहीं दोगे, अह - यह, एसणिजं - एषणीय आहार, किं - क्या, अज - आज, जण्णाणं - यज्ञों का, लहित्थ - प्राप्त करेंगे, लाहं - लाभ को।
भावार्थ - छात्रों की बात सुन कर यक्ष कहने लगा-‘पांच समिति से सुसमाधि वाले मुझे तथा तीन गुप्तियों से गुप्त इन्द्रियों को जीतने वाले मुझे यदि यह एषणीय आहार नहीं दोगे तो हे आर्यों! तुम लोग यज्ञ का क्या लाभ प्राप्त करोंगे?'
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