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हरिकेशीय - याज्ञिकों द्वारा उपहास
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याज्ञिकों द्वारा उपहास तं पासिऊणं एजंतं, तवेण परिसोसियं। पंतोवहि-उवगरणं, उवहसंति अणारिया॥४॥
कठिन शब्दार्थ - पासिऊणं - देख कर, एजंतं - आते हुए, तवेण - तप से, परिसोसियं - परिशुष्क (कृश) हुए, पंतोवहि - प्रान्त उपधि, उवगरणं - उपकरण वाले, उवहसंति. - उपहास करने लगे, अणारिया - अनार्य।
भावार्थ - तप से शुष्क (कृश) शरीर वाले प्रान्त (असार, जीर्ण और मलिन) उपधि (उपकरण) वाले उन मुनि को आते हुए देख कर अनार्य के समान वे ब्राह्मण हंसने लगे।
विवेचन - हरिकेश मुनि के शरीर की बाह्य आकृति, अत्यंत जीर्ण व मलिन उपधि तथा तपस्या से अत्यंत कृश शरीर को देखकर वे याज्ञिक हंसने लगे।
जाइमयपडिथद्धा, हिंसगा अजिइंदिया।
अबंभचारिणो बाला, इमं वयणमब्बवी॥५॥ . कठिन शब्दार्थ - जाइमय - जातिमद से, पडिथद्धा - अहंकार युक्त, हिंसगा - हिंसक, अजिइंदिया - अजितेन्द्रिय, अबंभचारिणो - अब्रह्मचारी - मैथुन सेवन करने वाले, बाला - अज्ञानी, इमं - इस प्रकार के, वयणं - वचन, अब्बवी - कहने लगे।
भावार्थ - जातिमद से अहंकारी बने हुए हिंसक अजितेन्द्रिय, अब्रह्मचारी वे ज्ञानी मुनि के प्रति इस प्रकार वचन बोलने लगे।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में यज्ञ करने वाले ब्राह्मणों के स्वरूप का वर्णन किया गया है। जब उन्होंने उक्त मुनि को देखा तो वे हंसने लगे क्योंकि उनको “हम ब्राह्मण है" इस प्रकार के जाति मद का गर्व था।
कयरे आगच्छइ दित्तरूवे, काले विकराले फोक्कणासे।
ओमचेलए पंसुपिसायभूए, संकर-दूसं परिहरिय कंठे॥६॥
कठिन शब्दार्थ - कयरे - कौन, आगच्छइ - आता है, दित्तरूवे - दैत्य रूप, कालेकाले वर्ण वाला (कलूटा), विकराले - विकराल, फोक्कणासे - ऊंची (बैडोल) नाक वाला,
ओमचेलए - अल्प और जीर्ण वस्त्रों वाला, पंसुपिसायभूए - धूलि - धूसरित होने से पिशाच (भूत) के समान, संकरदूसं - फटा चिथड़ा, परिहरिय - धारण किये हुए, कंठे - गले में।
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