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बहुश्रुतपूजा - ग्यारहवां अध्ययन
भुताभ्यास की प्रेरणा/उपसंहार तम्हा सुयमहिट्ठिजा, उत्तमट्ट गवेसए। जेणऽप्पाणं परं चेव, सिद्धिं संपाउणिजासि॥ त्ति बेमि॥३२॥
कठिन शब्दार्थ - तम्हा - इसलिए, सुयं - श्रुत (शास्त्र) का, अहिट्ठिजा - अध्ययन करे, उत्तमट्ठ - उत्तम अर्थ - मोक्ष की, गवेसए - गवेषणा करने वाला, जेण - जिससे कि, अप्पाणं - अपने आपको, परं - दूसरे को, सिद्धिं - सिद्धि को, संपाउणिजासि - सम्प्राप्त करा सके।
भावार्थ - इसलिए उत्तम अर्थ (मोक्ष) की गवेषणा करने वाला साधक, अध्ययन श्रवणचिन्तनादि द्वारा श्रुतज्ञान का आश्रय ग्रहण करे जिससे अपने आप को और दूसरों को मुक्ति की सम्यक् प्रकार से प्राप्ति करावे। इस प्रकार मैं कहता हूँ। __विवेचन - बहुश्रुत होने का अंतिम फल मोक्ष की प्राप्ति है। जो बहुश्रुत हैं वे कर्मों का क्षय करके उत्तम गति-मोक्ष में जाते हैं। उपलक्षण से उक्त गुणों को धारण करने वाले अन्य पुरुष भी कर्मों का क्षय करके मोक्ष को प्राप्त करते हैं।
॥ इति बहुश्रुतपूजा नामक म्यारहवाँ अध्ययन समाप्त॥
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