Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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बहुश्रुतपूजा - जम्बू वृक्ष की उपमा
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११. चन्द्रमा की उपमा जहा से उडुवई चंदे, णक्खत्त परिवारिए। पडिपुण्णे पुण्णमासीए, एवं हवइ बहुस्सुए॥२५॥
कठिन शब्दार्थ - उडुवई - नक्षत्रों का अधिपति, चंदे - चन्द्रमा, णक्खत्तपरिवारिए - नक्षत्रों से परिवृत्त हुआ, पुण्णमासीए - पूर्णिम को।
भावार्थ - जिस प्रकार उडुपति, नक्षत्रों का स्वामी चन्द्रमा, ग्रह-नक्षत्रों से घिरा हुआ तथा पूर्णिमा के दिन सोलह कलाओं से पूर्ण हो कर शोभित होता है, इसी प्रकार आत्मिक शीतलता से बहुश्रुत साधु भी शोभित होता है।
१२. कोष्ठागार की उपमा । जहा से सामाइंयाणं, कोट्ठागारे सुरक्खिए।
णाणा-धण्ण-पडिपुण्णे, एवं हवइ बहुस्सुए॥२६॥ .. कठिन शब्दार्थ - सामाइयाणं - सामाजिकों (किसानों, व्यापारियों आदि) का, कोट्ठागारेकोष्ठागार, सुरक्खिए - सुरक्षित, णाणा-धण्ण-पडिपुण्णे - नाना प्रकार के धान्यों से परिपूर्ण।
भावार्थ - जिस प्रकार सामाजिक अर्थात् संचयवृत्ति वाले लोगों का धान्यादि का कोठा, चूहे, चोर आदि से सुरक्षित होता है और अनेक प्रकार के धान्यों से भरा हुआ होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत साधु होता है अर्थात् धान्य के उक्त कोठे के समान बहुश्रुत भी गच्छ के लिए उपयोगी अंग-उपांग-प्रकीर्णक आदि विविध श्रुतज्ञान से पूर्ण होता है और प्रवचन का आधारभूत होने से संघ द्वारा सुरक्षित होता है।
१३. जम्बू वृक्ष की उपमा जहा सा दुमाण पवरा, जंबू णाम सुदंसणा। अणाढियस्स देवस्स, एवं हवइ बहुस्सुए॥२७॥
कठिन शब्दार्थ - दुमाण - वृक्षों में, पवरा - श्रेष्ठ, जंबू - जम्बू वृक्ष, सुदंसणा णाम - सुदर्शन नामक, अणाढियस्स - अनादृत, देवस्स - देवता के। .. भावार्थ - जिस प्रकार अनादृत नामक व्यंतर देव से अधिष्ठित सुदर्शन नाम वाला जम्बू
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