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बहुश्रुतपूजा - चक्रवर्ती की उपमा
७ वासुदेव की उपमा
जहा से वासुदेवे, संख-चक्क - गदाधरे ।
अप्पsिहय-बले जोहे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २१ ॥
कठिन शब्दार्थ - संख-चक्क - गदाधरे - शंख, चक्र और गदा का धारण करने वाला, वासुदेवे - वासुदेव, अप्पsिहय बले - अप्रतिहत बल वाला, जोहे - योद्धा ।
भावार्थ - जिस प्रकार शंख, चक्र और गदा को धारण करने वाला वह वासुदेव अप्रतिहत बल वाला योद्धा होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत साधु भी अहिंसा, संयम और तप से शोभित होता है।
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विवेचन - जैसे वासुदेव स्वभावतः शक्ति-सम्पन्न होता है और शस्त्र धारण कर के तो वह शत्रुओं के लिए विशेष रूप से अजेय हो जाता है । उसी प्रकार बहुश्रुत भी स्वाभाविक प्रतिभा से सम्पन्न होता है और सम्यग् ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप विशिष्ट आध्यात्मिक शक्तियों से सम्पन्न हो कर अन्यतीर्थी और कर्म-वैरियों के लिए वासुदेव के समान अजेय योद्धा बन जाता है।
८. चक्रवर्ती की उपमा
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जहा से चाउरंते, चक्कवट्टी महिड्डिए ।
चोद्दस - रयणाहिवई, एवं हवइ बहुस्सु ॥ २२ ॥
कठिन शब्दार्थ - चाउरंते - चातुरन्त, चक्कवट्टी - चक्रवर्ती, षट्खण्डों का अधिपति, महिडिए - महान् ऋद्धिमान्, चोद्दस - रयणाहिवई - चौदह रत्नों का अधिपति (स्वामी) |
भावार्थ - जिस प्रकार चक्रवर्ती चारों दिशाओं में भरतक्षेत्र के अन्त तक राज्य करने वाला अथवा हाथी, घोड़े, रथ और पैदल रूप चतुरंगिणी सेना से शत्रुओं का नाश करने वाला, महा ऋद्धिशाली तथा चौदह रत्नों का स्वामी होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत होता है । अर्थात् चक्रवर्ती के समान बहुश्रुत की कीर्ति चारों दिशाओं में अन्त तक व्याप्त होती है । वह भी दान, शील, तप और भावना रूप धर्म से कर्म शत्रुओं का नाश करने वाला होता है, आमर्ष औषधि आदि अनेक ऋद्धियों से संपन्न और चौदह पूर्वों के ज्ञान का स्वामी होता है।
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