Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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कठिन शब्दार्थ
आइण्ण
दढपरक्कमे - दृढ़ पराक्रम वाला, उभओ
भावार्थ - जिस प्रकार आकीर्ण जाति के उत्तर घोड़े पर सवार हुआ दृढ़ पराक्रम वाला वीर योद्धा दोनों ओर (दाहिनी और बांयी और अथवा आगे और पीछे ) वाद्य ध्वनि से अथवा आशीर्वचन एवं जयनाद से शोभा पाता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी दिन-रात स्वाध्याय-ध्वनि एवं स्व-पर पक्ष की जयनाद से शोभित होता है।
विवेचन जैसे अतिशय पराक्रमी शूरवीर योद्धा, आकीर्ण जाति के उत्तम अश्व पर सवार हुआ किसी भी समर्थ शत्रु से भयभीत नहीं होता और किसी से भी पराजित नहीं होता किन्तु सर्वत्र विजयी होता है, इसी प्रकार जिन-प्रवचन रूप अश्व का आश्रय लेने वाला बहुश्रुत किसी भी समर्थ वादी को देख कर घबराता नहीं है। बहुश्रुत उससे शास्त्रार्थ कर जय प्राप्त करता है और जिन-प्रवचन की महती प्रभावना करता है। जैसे उक्त समर्थ योद्धा के दोनों ओर बाजे-बजते हैं और बन्दीजनों के आशीर्वचन और जयनाद के बीच वह शोभा पाता है, उसी प्रकार उक्त बहुश्रुत दिन-रात स्वाध्याय ध्वनि एवं स्व-पर पक्ष के जयनाद तथा आशीर्वचनों से शोभा प्राप्त करता है।
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बहुश्रुतपूजा - हाथी की उपमा
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आकीर्ण, समारूढे
सवार हुआ, सूरे
दोनों ओर से, णंदिघोसेणं - नंदीघोष से ।
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४. हाथी की उपमा
जहा करेणु परिकिणे, कुंजरे सट्ठि- हायणे । बलवंते अप्पडिहए, एवं हवइ बहुस्सु ॥ १८ ॥ कठिन शब्दार्थ करेणु - हथिनियों से, परिकिण्णे सट्ठिहायणे - साठ वर्ष की अवस्था का, बलवं पराभूत नहीं होता।
भावार्थ - जिस प्रकार हथिनियों से घिरा हुआ साठ वर्ष की अवस्था का बलवान् हाथी दूसरे हाथियों से पराभूत नहीं हो सकता इसी प्रकार परिपक्व बुद्धि वाला बहुश्रुत मुनि किसी से भी पराभूत नहीं होता अर्थात् हथिनियों की भांति औत्पात्तिकी आदि बुद्धि एवं विविध विद्याओं से युक्त तथा वयोवृद्ध होने से स्थिरबुद्धि वाले बहुश्रुत भी ज्ञान की अपेक्षा महा बलशाली होते हैं। विपक्षी उन्हें शास्त्रार्थ में पराभूत नहीं कर सकते ।
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शूरवीर,
घिरा हुआ, कुंजरे - हाथी, बलवान्, अप्पsिहए अप्रतिहत
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