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शोभित हैं और बहुश्रुत में रहे हुए ये गुण विकार प्राप्त नहीं करते, किन्तु उत्तरोत्तर विशेष निर्मल
होते जाते हैं।
उत्तराध्ययन सूत्र - ग्यारहवां अध्ययन
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विवेचन
प्रस्तुत गाथा में प्रयुक्त 'दुहओ वि विराय' की व्याख्या इस प्रकार है शंख में रखा हुआ दूध निज गुण से और शंख संबंधी गुण से दोनों प्रकार से शोभा पाता है। दूध स्वयं स्वच्छ होता है जब वह शंख जैसे स्वच्छ पात्र में रखा जाता है तब वह और अधिक स्वच्छ प्रतीत होता है। शंख में रखा हुआ दूध न तो खट्टा होता है और न झरता है।
यों तो धर्म, कीर्ति और श्रुत ये तीनों स्वयं ही निर्मल होने से सुशोभित होते हैं तथापि मिथ्यात्व आदि कालुष्य दूर होने से निर्मलता आदि गुणों से शंख के समान उज्ज्वल बहुश्रुत के आश्रय में रहे हुए ये गुण विशेष प्रकार से सुशोभित होते हैं ।
२. आकीर्ण अश्व की उपमा
जहा से कंबोयाणं, आइण्णे कंथए सिया ।
आसे जवेण पवरे, एवं हवइ बहुस्सु ॥ १६ ॥
कठिन शब्दार्थ - कंबोयाणं कम्बोज देश में उत्पन्न घोड़ों, आइण्णे - आकीर्ण (जातिमान्), कंथए - कंथक, आसे - अश्व, जवेण - वेग (स्फूर्ति) में, पवरे - श्रेष्ठ ।
भावार्थ - जिस प्रकार कम्बोज देश के घोड़ों में शीलादि गुणों से युक्त घोड़ा प्रधान होता है तथा वेग में (तेज चाल में) श्रेष्ठ होता है, इसी प्रकार बहुश्रुत साधु सभी साधुओं में श्रुतशील आदि गुणों से श्रेष्ठ होने से प्रधान होता है।
विवेचन कम्बोज देश के घोड़े अश्व जाति में श्रेष्ठ माने जाते हैं किन्तु उनमें भी विशिष्ट शीलादि गुण सम्पन्न आकीर्ण अश्व प्रधान होता है और चाल का भी बहुत तेज होता है। इसी प्रकार मनुष्यों में जिन धर्म स्वीकार करने वाले सभी व्रतों में श्रेष्ठ होते हैं और उनमें भी बहुश्रुत साधु श्रुत-शील आदि गुणों की अपेक्षा विशेष श्रेष्ठ होता है, अतएव उनमें प्रधान माना जाता है।
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३. शूरवीर की उपमा
जहाऽऽइण्ण-समारूढे, सूरे दढपरक्कमे । उभओ णंदिघोसेणं, एवं हवइ बहुस्सुए ॥१७॥
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