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१८६.
उत्तराध्ययन सूत्र - ग्यारहवां अध्ययन xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में 'कुंजरे सहिहायणे' - साठ वर्ष का हाथी कहने का अभिप्राय यह है कि साठ वर्ष की आयु तक हाथी का बल प्रति वर्ष उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है उसके पश्चात् कम होने लगता है। अतः यहाँ हाथी की पूर्ण बलवत्ता बताने के लिए, सट्टिहायणेषष्ठी वर्ष का उल्लेख किया गया है।
वृषभ की उपमा जहा से तिक्खसिंगे, जायक्खंधे विरायइ। वसहे जूहाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - तिक्खसिंगे - तीक्ष्ण सींग वाला, जायक्खंधे - जात स्कन्ध्र - जिस वृषभ का कंधा अत्यंत पुष्ट हो गया हो, विरायइ - सुशोभित होता है, वसहे - सांड, जूहाहिवई - यूथ का अधिपति। . . भावार्थ - जिस प्रकार वह प्रसिद्ध तीक्ष्ण सींग वाला पुष्ट स्कन्ध वाला (वृषभ) सांड, समूह का नायक होकर विशेष शोभा पाता है, उसी प्रकार बहुश्रुत भी स्व-पर सिद्धांत रूप सींगों वाला और गच्छ की धुरा को धारण करने में समर्थ होता है तथा समुदाय का नायक (आचार्य हो कर शोभा पाता) है।
६ सिंह की उपमा जहा से तिक्खदाढे, उदग्गे दुप्पहंसए। सीहे मियाण पवरे, एवं हवइ बहुस्सुए॥२०॥
कठिन शब्दार्थ - तिक्खदाढे - तीक्ष्ण दाढों वाला, उदग्गे - उत्कट-प्रचंड पूर्ण युवावस्था को प्राप्त, दुप्पहंसए - दुष्प्रधर्ष - किसी से न दबने वाला - अपराजेय, सीहे - सिंह, मियाण - मृगों-वन्य प्राणियों में। ___ भावार्थ - जिस प्रकार वह प्रसिद्ध तीखी दाढों वाला किसी से न दबने वाला प्रचंड सिंह, मृगों में (समस्त वनचारी पशुओं में) श्रेष्ठ होता है। इसी प्रकार बहुश्रुत साधु भी श्रेष्ठ होता है। अर्थात् परपक्ष को पराजित करने में समर्थ, नैगमादि नय रूप तीखी दाढ़ों वाला प्रखर प्रतिभा सम्पन्न बहुश्रुत भी अन्यतीर्थियों में प्रधान होता है। वह उनके लिए अजेय होता है।
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