Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
नमि प्रव्रज्या - दसवां प्रश्न-प्राप्त काम भोगों को छोड़कर..... १४६ ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
पुढवी साली जवा चेव, हिरण्णं पसुभिस्सह। पडिपुण्णं णालमेगस्स, इइ.विजा तवं चरे॥४६॥
कठिन शब्दार्थ - पुढवी - समग्र पृथ्वी, साली - शाली - चावल, जवा - जौ, हिरणं - स्वर्ण, पसुभिस्सह - पशुओं सहित, पडिपुण्णं - परिपूर्ण करने में, णालं - समर्थ नहीं है, इइ - इस प्रकार, विजा - जान कर, तवं - तप का, चरे - आचरण करे। ____ भावार्थ - चावल, जौ और सोना तथा पशुओं आदि से परिपूर्ण यह सारी पृथ्वी यदि किसी एक व्यक्ति को दे दी जाय तो भी उसकी इच्छा पूर्ण होना कठिन है, इस प्रकार जान कर बुद्धिमान् पुरुष तप का आचरण करे। _ विवेचन - राजर्षि नमि कहते हैं कि संसार के पदार्थों में तृष्णा की पूर्ति करने का सामर्थ्य नहीं है। जैसे अग्नि की ज्वाला घृत डालने से शांत होने की बजाय तीव्र होती है उसी प्रकार संसार के पदार्थों से भी तृष्णा घटने के स्थान पर बढ़ती है। अतएव लोभी पुरुष को धन धान्यादि से परिपूर्ण सारा भूमंडल भी दे दिया जावे तो भी उसकी तृष्णा शांत होने के बजाय और अधिक प्राप्त करने के लिए दौड़ेगी। दसवां प्रश्न - प्राप्त काम भोगों को छोड़ कर अप्राप्त
की इच्छा क्यों? एयमढें णिसामित्ता, हेउकारणचोइओ। . तओ णमि रायरिसिं, देविंदो इणमब्बवी॥५०॥
भावार्थ - नमि राजर्षि के उत्तर देने के बाद पूर्वोक्त अर्थ सुन कर हेतु और कारण से प्रेरित हुए देवेन्द्र ने नमिराजर्षि से यह कहा।
अच्छेरगमन्भुदए, भोए चयसि पत्थिवा!। असंते कामे पत्थेसि, संकप्पेण विहम्मसि ॥५१॥
कठिन शब्दार्थ - अच्छेरगं - आश्चर्य है, अब्भुदए - अद्भुत, भोए - भोगों को, चयसि - त्यागते हो, पत्थिवा - पार्थिव-राजा, असंते - असत्-अप्राप्त, कामे - कामभोगों की, पत्थेसि - इच्छा करते हो, संकप्पेण - संकल्प से ही, विहम्मसि - पीड़ित होते हो।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org