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. उत्तराध्ययन सूत्र - ग्यारहवां अध्ययन ******kakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
अभिक्खणं कोही हवइ, पबंधं च पकुव्वइ। मित्तिजमाणो वमइ, सुयं लभ्रूण मजइ॥७॥
कठिन शब्दार्थ - चोद्दसहिं - चौदह, वट्टमाणे - वर्तमान, संजए - संयत, अविणीएअविनीत, णिव्वाणं - निर्वाण, कोही - क्रोधी, पबंध - प्रबंध - अविच्छिन्न रूप से प्रवर्तन, विकथा आदि में निरन्तर प्रवृत्त, मित्तिजमाणो - मित्रता होते हुए भी मित्रता को, वमइ - छोड़ देता है, सुयं - श्रुत, लळूण - प्राप्त कर, मजइ - अभिमान करता है।
___भावार्थ - चौदह स्थानों में वर्तमान संयत (संयति) अविनीत कहा जाता है और वह निर्वाण प्राप्त नहीं करता। ___ जो निरंतर क्रोध करने वाला होता है अर्थात् निमित्त वश या बिना किसी निमित्त के भी क्रोध करता है और प्रबंध करता है (क्रोध को दीर्घ काल तक बनाये रखता है और विकथा आदि में निरन्तर प्रवृत्त रहता है) मित्रता होते हुए भी मित्रों को छोड़ देता है (मित्रता निभाता नहीं तथा मित्रों का उपकार नहीं मानता) और शास्त्र-ज्ञान पा कर अभिमान करता है।
अवि पावपरिक्खेवी, अवि मित्तेसु कुप्पइ। सुप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे भासइ पावगं॥८॥ पइण्णवाई दुहिले, थद्धे लुद्धे अणिग्गहे। असंविभागी अवियत्ते, अविणीएत्ति वुच्चइ॥६॥
कठिन शब्दार्थ - पाव परिक्खेवी - पाप परिक्षेपी, कुप्पइ - कोप करता है, सुप्पियस्सअतिशय प्रिय, मित्तस्स - मित्र की, भासइ - कहता है, पावगं - बुराई, पइण्णवाई - प्रकीर्णवादी - प्रतिज्ञावादी, दुहिले - मित्रद्रोही, असंविभागी - संविभाग नहीं करने वाला, अवियत्ते- अप्रीतिकर, अविणीए - अविनीत।
भावार्थ - जो आचार्यादि द्वारा समिति गुप्ति आदि में स्खलना रूप पाप हो जाने पर उनका भी तिरस्कार करने वाला होता है, अथवा अपने दोषों को दूसरों पर डालता है, मित्रों पर भी कोप करता है तथा अतिशय प्रिय मित्र की भी एकांत में (पीठ पीछे) बुराई कहता है।
जो असम्बद्ध वचन कहने वाला, पात्र अपात्र का विचार न करते हुए शास्त्रों के गूढ़ रहस्यों को बतलाने वाला अथवा सर्वथा एकांत पक्ष को लेकर बोलने वाला, मित्रद्रोही, अभिमानी रसादि में गृद्ध, इन्द्रियों को वश में नहीं करने वाला, आहारादि का संविभाग न करने वाला और सभी को अप्रीति उत्पन्न करने वाला अविनीत कहलाता है।
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