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... बहुश्रुतपूजा - सुविनीत कौन?
१८१ Attraktarttitutiriktikdakikikatrikakaitrakakakakakakakakakaki
विवेचन - उपर्युक्त चार गाथाओं में अविनीत के चौदह लक्षण बताये गये हैं जो इस प्रकार हैं - १. जो बार बार क्रोध करता है '२. जो क्रोध को निरन्तर लम्बे समय तक बनाये रखता है ३. जो मित्रता किये जाने पर भी उसे ठुकरा देता है ४. जो शास्त्रज्ञान प्राप्त करके अहंकार करता है ५. जो स्खलना रूप पाप को ले कर आचार्य आदि की निन्द्रा करता है ६. जो मित्रों पर भी क्रोध करता है ७. जो अत्यंत प्रिय मित्र का भी अवर्णवाद बोलता है . जो प्रकीर्णवादी - असंबद्धभाषी है ६. द्रोही है १०. अभिमानी है ११. रसलोलुप है १२. अजितेन्द्रिय है १३. असंविभागी है - आहारादि का विभाग नहीं करता है १४. जो अप्रीतिकर, अप्रीति उत्पन्न करने वाला है। __ अब सुविनीत के लक्षण बतलाते हैं
सुविनीत कौन? अह पण्णरसहिं ठाणेहिं, सुविणीएत्ति वुच्चइ। णीयावित्ती अचवले, अमाई अकुऊहले॥१०॥ अप्पं च अहिक्खिवइ, पबंधं च ण कुव्वइ। मित्तिजमाणो भयइ, सुयं लद्धं ण मजइ॥११॥ ण य.पावपरिक्खेवी, ण य मित्तेसु कुप्पड़। अप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे कल्लाणं भासइ॥१२॥ कलह डमर वजिए, बुद्धे अभिजाइए। हिरिमं पडिसंलीणे, सुविणीएत्ति वुच्चइ॥१३॥
कठिन शब्दार्थ - पण्णरसहिं - पन्द्रह, सुविणीए - सुविनीत, णीयावित्ती - नीचैर्वृत्तिनम्र व्यवहार करने वाला, अचवले - अचपल - चपलता रहित, अमाई - अमायी - माया रहित, अकुअहले - अकुतुहल-कुतूहल रहित, खेल तमाशों में अनुत्सुक, अप्पं अहिक्खिवइतिरस्कार नहीं करने वाला, भयइ - निभाता है, अप्पियस्स - अप्रिय, कल्लाणं - भलाई, कलह - क्लेश, उमरवज्जिए - दंगे से बचा हुआ,. अभिजाइए - अभिजातिक - कुलीन, हिरिमं - हीमान्-लज्जावान्, पडिसंलीणे - प्रतिसंलीन - इन्द्रियों को वश में रखने वाला।
भावार्थ - अथ, पन्द्रह स्थानों से (पन्द्रह गुण वाला व्यक्ति) सुविनीत कहलाता है - नम्र
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