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उत्तराध्ययन सूत्र - दसवां अध्ययन
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चार्वाक आदि का कथन किया हुआ मार्ग मिथ्या होने से, रागद्वेषादि भाव कंटकों से व्याप्त है। उस पर चलने से भव्य जीवों का कल्याण नहीं हो सकता किन्तु जो सम्यग्दर्शनादि रूप मोक्ष मार्ग है वह निष्कंटक और सरल है जिस पर चलने से एक न एक दिन मोक्ष की प्राप्ति अवश्यंभावी है।
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अबले जह भारवाहएं, मा मग्गे विसमेऽवगाहिया ।
पच्छा पच्छाणुतावए, समयं गोयम! मा पमायए ॥ ३३ ॥
विषम,
पच्छाणुताव
कठिन शब्दार्थ - अबले - निर्बल, भारवाहए भारवाहक, विसमे अवगाहिया ग्रहण करके, पच्छा पीछे, पश्चात्ताप करने वाला होता है। भावार्थ - जिस प्रकार भार उठाने वाला निर्बल पुरुष विषम मार्ग में पहुँच कर धैर्य खो देता है और खिन्न होकर अपना बहुमूल्य भार वहीं छोड़ देता है और बाद में अपने घर पहुँच - कर गरीबी से पीड़ित होकर पश्चात्ताप करता है इसी प्रकार हे गौतम! तुम भी कहीं प्रमाद वश स्वीकृत संयम भार को छोड़ नहीं देना, इसलिए हे गौतम! समय मात्र भी प्रमाद मत कर 1
विवेचन भारवाहक का दृष्टान्त देकर प्रभु उत्तम शिक्षा फरमाते हैं कि यदि किसी कारण से संयम में अरुचि उत्पन्न हो जावे तो भी संयम त्याग करने के भाव कदापि न होने चाहिये अपितु सम्मुख आए हुए कष्टों को पूर्वकृत अशुभ कर्मों का विपाक जान कर धीरता पूर्वक सहन करना चाहिये ।
संसार सागर को शीघ्र पार करने का निर्देश
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हु सि अण्णवं महं, किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ । गोयम! मा पमायए ॥ ३४ ॥
तिण्णो अभितर पारं गमित्तए, समयं कठिन शब्दार्थ - तिण्णो सि पार कर गया है, हु- निश्चय ही, महं अण्णवं विशाल संसार समुद्र को, किं पुण - फिर क्यों, चिट्ठसि - खड़ा है, तीरं - तीर के निकट, आया हुआ, अभितुर - शीघ्रता कर, पारं भावार्थ हे गौतम! निश्चय ही तुम संसार रूप महान् समुद्र को तिर गये हो । फिर किनारे पर पहुँच कर क्यों खड़े हो संसार रूप समुद्र के पार ( मुक्ति की ओर) जाने के लिए शीघ्रता करो और इसमें समय मात्र भी प्रमाद मत करो।
आगओ
पार, ग़मित्तए - जाने को ।
विवेचन
भगवान् ने गौतम को लक्ष्य कर सभी भव्य जीवों को उपदेश देते हुए कहा है
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