Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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द्रुमपत्रक - सिद्धि का उपाय
कि संसार समुद्र का तीर जो मोक्ष है उसको प्राप्त करने के लिए शीघ्र तैयारी करो। एतदर्थ (इस कार्य की सिद्धि में) किचिन्मात्र भी प्रमाद सेवन मत करो।
अप्रमाद का फल अकलेवरसेणिमूसिया, सिद्धिं गोयम लोयं गच्छसि। खेमं च सिवं अणुत्तरं, समयं गोयम! मा पमायए॥३५॥
कठिन शब्दार्थ - अकलेवर - शरीर रहित, सेणिं - श्रेणि को, ऊसिया - ऊंची करके, सिद्धिंलोयं - सिद्ध लोक को, गच्छसि - जावेगा, खेमं - क्षेम, सिवं - शिवकल्याण रूप, अणुत्तरं - अनुत्तर-सर्वोत्कृष्ट।
. भावार्थ - हे गौतम! सिद्धिपद की सीढ़ी रूप क्षपक-श्रेणी पर उत्तरोत्तर चढ़ कर उपद्रव रहित, कल्याणकारी और सर्व प्रधान सिद्धि लोक को प्राप्त करेगा। अतएव हे गौतम! समय मात्र भी प्रमाद मत कर।
विवेचन - इस गाथा में बताया गया है कि जैसे शरीर रहित सिद्धों की श्रेणी है उसी के • समान जब यह आत्मा क्षपक श्रेणि पर आरूढ़ होता है तब उसके भाव संयम में विशिष्ट शुद्धि होती है। जैसे सिद्धों की श्रेणी ऊँची है उसी प्रकार क्षपक श्रेणी को प्राप्त करके यह जीव सिद्ध
लोक को चला जाता है। सिद्ध लोक स्वचक्र और परचक्रादि के भयों से रहित होने के कारण . परम कल्याण रूप और सर्वोत्कृष्ट है।
. .. सिद्धि का उपाय . बुद्धे परिणिव्वुडे चरे, गाम गए णगरे व संजए।
संतिमग्गं च वूहए, समयं गोयम! मा पमायए॥३६॥
कठिन शब्दार्थ - बुद्धे - बुद्ध, परिणिव्वुडे - निवृत्त होकर, चरे - संयम मार्ग में चले, गामगए - ग्राम में गया हुआ, णगरे - नगर में, संजए - संयत, संतिमग्गं - शांति मार्ग को, वूहए - बढ़ा। . भावार्थ - हे गौतम! ग्राम में, नगर में अथवा शरण्यादि में गया हुआ तू तत्त्वों को जान कर कषायाग्नि का उपशम करने के कारण सब प्रकार से शान्त एवं संयत बन कर मुनि-धर्म का पालन कर तथा उपदेशादि द्वारा दशविध यति-धर्म रूप शान्ति-मार्ग की वृद्धि कर, इसमें एक समय के लिए भी प्रमाद मत कर।
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