Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - दसवां अध्ययन ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
त्याग की दृढ़ता चिच्चाण धणं च भारियं, पव्वइओ हि सि अणगारियं।
मा वंतं पुणो वि आविए, समयं गोयम! मा पमायए॥२६॥ · कठिन शब्दार्थ - चिच्चाण - छोड़ कर, धणं - धन, भारियं - भार्या को, पव्वइओ सि- प्रवर्जित हुआ है, अणगारियं - अनगारपन को, वंतं - वमन किये हुए को, पुणो - पुनः, आविए - पी।
भावार्थ - निश्चय ही धन और भार्या का त्याग कर के साधुत्व की तुमने दीक्षा धारण की है। अतएव वमन किये हुए विषयों का तुम पुनः पान न करो (पुनः भोग न करो) हे गौतम! समय मात्र भी प्रमाद मत कर।
विवेचन - जैसे वमन किये हुए पदार्थ को फिर से कोई मनुष्य ग्रहण नहीं करता उसी प्रकार जिन धन, धान्य और स्त्री पुत्र आदि का त्याग कर प्रव्रज्या ग्रहण की है उन त्यागे हुए पदार्थों को फिर से ग्रहण करने का कभी विचार न कर।
अवउज्झिय मित्तबंधवं, विउलं चेव धणोह-संचयं। . मा तं बिइयं गवेसए, समयं गोयम! मा पमायए॥३०॥
कठिन शब्दार्थ - अवउज्झिय - त्याग कर, मित्तबंधवं - मित्र और बांधवों को, विउलं - विपुल, धणोह - धन राशि के, संचयं - संचय को, बिइयं - दूसरी बार, गवेसए - गवेषण कर।
भावार्थ - मित्र एवं बन्धुजनों को तथा विपुल एकत्रित धन को छोड़कर, हे गौतम! दूसरी बार फिर उसकी गवेषणा मत कर अर्थात् पुनः प्राप्त करने की इच्छा मत कर। त्याग को स्थिर रखने में समय मात्र भी प्रमाद मत कर।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में त्यागे हुए मित्र, बंधु और धन समूह को पुनः प्राप्त करने के प्रयत्न का निषेध किया गया है।
मोक्ष मार्ग ण हु जिणे अज दीसइ, बहुमए दीसइ मग्गदेसिए। - संपइ णेयाउए पहे, समयं गोयम! मा पमायए॥३१॥
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