Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - दसवां अध्ययन ********************************************************
इसका भावार्थ यह है कि सूक्ष्म और बादर वनस्पतिकाय में असंख्यात काल पर्यन्त यह जीव रह सकता है और निगोद में अनंतकाल पर्यन्त रहता है। बादर निगोद में ७० कोटाकोटि सागरोपम काल पर्यन्त रहता है। अतः यदि यह जीव निगोद में चला गया तो अनंत काल पर्यन्त उसे वहीं रहना होगा। वहाँ से निकलना बहुत ही कठिन और दुःखपूर्वक है इसीलिए गाथा में "दुरंतं" विशेषण दिया गया है।
बेइन्द्रिय की कायस्थिति बेइंदियकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे। कालं संखिज सण्णियं, समयं गोयम! मा पमायए॥१०॥ कठिन शब्दार्थ - बेइंदियकायं - द्वीन्द्रियकाय में, संखिज - संख्येय, सण्णियं - संज्ञक।
भावार्थ - द्वीन्द्रिय जीवों की काया में गया हुआ जीव इसी काय में उत्कृष्ट संख्यात संज्ञा वाले काल तक (संख्यात हजार वर्ष तक) रहता है। अतएव हे गौतम! समय मात्र भी . प्रमाद मत कर।
विवेचन - जिन जीवों के स्पर्शन और जिह्वा - ये दो इन्द्रियाँ होती हैं, वे द्वीन्द्रिय जीव कहलाते हैं जैसे - सीप, शंख आदि। दो इन्द्रिय वाले जीवों में यदि जीव जन्म-मरण करने लग जाय तो उत्कृष्ट संख्यात वर्ष सहस्र काल पर्यन्त वह उसी काय में जन्म मरण करता रहता है। अतः मनुष्य जन्म को प्राप्त करके धर्मानुष्ठान में कभी प्रमाद नहीं करना चाहिये।
तेइन्द्रिय जीवों की कायस्थिति तेइंदियकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे। कालं संखिज्ज सण्णियं, समयं गोयम! मा पमायए॥११॥ कठिन शब्दार्थ - तेइंदियकायं - तेइन्द्रिय - तीन इन्द्रिय वाले काय में।
भावार्थ - त्रीन्द्रिय जीवों की काय में गया हुआ जीव इसी काय में उत्कृष्ट संख्यात संज्ञा वाले काल तक (संख्यात हजार वर्ष तक) रहता है। अतएव हे गौतम! समय मात्र भी प्रमाद मत कर।
विवेचन - जिन जीवों के स्पर्शन, जिह्वा और घ्राण - ये तीन इन्द्रियाँ होती हैं, वे तेइन्द्रिय कहलाते हैं, जैसे - कीड़ी आदि।
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