Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
द्रुमपत्रक - आर्य देश की दुर्लभता
१६५ *************************kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk नरक में नहीं जाता किन्तु वहाँ से निकल कर मनुष्य या तिर्यंच योनि को प्राप्त होता है। देव तथा नैरयिक की उत्कृष्ट आयु ३३ सागरोपम की है। अतः भगवान् फरमाते हैं कि विचारशील पुरुष को कर्म के क्षय करने में अणुमात्र भी प्रमाद का सेवन नहीं करना चाहिये।
एवं भव संसारे, संसरइ सुहासुहेहिं कम्मेहं। जीवो पमाय बहुलो, समयं गोयम! मा पमायए॥१५॥
कठिन शब्दार्थ - भव संसारे - जन्म मरण रूप संसार में, संसरइ - परिभ्रमण करता है, सुहासुहेहिं - शुभाशुभ, कम्मेहिं - कर्मों से, पमाय बहुलो - बहुत प्रमाद वाला।
. भावार्थ - इस प्रकार बहुत प्रमाद वाला जीव अपने शुभ-अशुभ कर्मों के अनुसार नरक तिर्यंच आदि भव रूप संसार में भ्रमण करता है। इसलिए हे गौतम! एक समय का भी प्रमाद मत कर।
विवेचन - इस अध्ययन की गाथा नं. ४ में मनुष्य भव की दुर्लभता बतायी है। मनुष्य भव दुर्लभ क्यों है? इसका कारण बताते हुए शास्त्रकार ने फरमाया है कि-मनुष्य भव को प्राप्त करने में बाधक कारण बहुत हैं। गाथा ५ वीं से लेकर चौदहवीं गाथा तक ग्यारह बाधक कारण बताये हैं। जिनको ग्रन्थकारों ने 'घाटियाँ' (पहाड़ियाँ) बतलाई हैं। वे ये हैं - १. पृथ्वीकाय २. अप्काय ३. तेउकाय ४. वायुकाय ५. वनस्पतिकाय ६. बेइन्द्रिय ७. तेइन्द्रिय.८. चतुरिन्द्रिय ६. तिर्यंचपंचेन्द्रिय १०. देव ११. नरक। इस प्रकार इन ग्यारह घाटियों का उल्लंघन करने के बाद कर्मों की विशुद्धि होते-होते जब महान् पुण्य का उदय होता है तब मनुष्य भव की प्राप्ति होती है। इसीलिए कहा गया है - . मानव भव: दुर्लभ अति, पुण्य योग से पाय।
घाटी ग्यारह उल्लंघ कर, अवसर पुगो आय॥
किसी स्तवन में नौ घाटियों का ही उल्लेख है किन्तु इस आगम प्रमाण से ग्यारह घाटी ही कहना उचित है।
आर्य देश की दुर्लभता लभ्रूण वि माणुसत्तणं, आरियत्तणं पुणरावि दुल्लहं। बहवे दसुया मिलक्खुया, समयं गोयम! मा पमायए॥१६॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org