Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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द्रुमपत्रक - इन्द्रिय बलों की क्षीणता
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परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पंडुरया हवंति ते। से चक्खु-बले य हायइ, समयं गोयम! मा पमायए॥२२॥ कठिन शब्दार्थ - चक्खुबले - चक्षुओं का बल।
भावार्थ - तुम्हारा शरीर वृद्धावस्था और रोगादि कारणों से जीर्ण हो रहा है। तुम्हारे केश श्वेत (सफेद) हो रहे हैं और वह आँखों की शक्ति क्षीण होती जा रही हैं। अतएव हे गौतम! एक समय का भी प्रमाद मत कर। .
विवेचन - श्रोत्रेन्द्रिय बल के बाद इस गाथा में चक्षुओं के बल की क्षीणता का वर्णन किया गया है। जैसे श्रोत्रबल के क्षीण होने से धर्म का श्रवण नहीं हो सकता उसी प्रकार नेत्र बल क्षीण होने से धर्म कार्य का सम्पादन नहीं हो सकता है।
परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पंडुरयां हवंति ते।' से घाण-बले य हायइ, समयं गोयम! मा पमायए॥२३॥ कठिन शब्दार्थ - घाणबले - घ्राणबल।
भावार्थ - तुम्हारा शरीर जरा (बुढ़ापा) अथवा रोगादि कारणों से जीर्ण हो रहा है। तुम्हारे केश श्वेत (सफेद) हो रहे हैं और वह नासिका की घ्राणशक्ति का ह्रास होता जा रहा है। अतएव हे गौतम! एक समय का भी प्रमाद मत कर।
विवेचन - घ्राणेन्द्रिय की हानि भी ज्ञान की अपूर्णता में सहायक है क्योंकि सुगंध और दुर्गन्ध की परीक्षा में उसका ही विशेष उपयोग होता है अतः घ्राणेन्द्रिय की निर्बलता से इन्द्रियजन्य ज्ञान में न्यूनता अवश्य रहती है।
परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पंडुरया हवंति ते। से जिब्भ-बले य हायइ, समयं गोयम! मा पमायए॥२४॥ कठिन शब्दार्थ - जिब्भबले - जिह्वा का बल।
भावार्थ - तुम्हारा शरीर जीर्ण हो रहा है। तुम्हारे केश श्वेत (सफेद) हो रहे हैं और वह जीभ अर्थात् रसना की आस्वादन शक्ति क्षीण होती जा रही है। अतएव हे गौतम! एक समय का भी प्रमाद मत कर।
विवेचन - यदि रसनेन्द्रिय का बल क्षीण हो जावे तो शास्त्र स्वाध्याय में बहुत कमी हो जाती है। शब्दों का उच्चारण भी भली प्रकार से नहीं हो सकता। अतः जिन जीवों को रसनेन्द्रिय
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