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उत्तराध्ययन सूत्र - नौवां अध्ययन ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★attarak
कठिन शब्दार्थ - हिरण्णं - चांदी-स्वर्ण के आभूषण, सुवण्णं - सोना, मणिमुत्तं - मणि मोती, कंसं - कांसी के भाजन, दूसं - वस्त्र, वाहणं - वाहन, कोसं - कोश - भण्डार को, वहावइत्ताणं (वडइत्ताणं) - बढा करके।
भावार्थ - चांदी-स्वर्ण के आभूषण सोना, मणि और मोती, काँसी के बरतन, वस्त्र और हाथी-घोड़ा-रथ आदि वाहन तथा भण्डार इन्हें बढ़ा कर हे क्षत्रिय! उसके बाद तुम प्रव्रज्या धारण करना। विवेचन - इस प्रश्न से. इन्द्र, नमिराजर्षि की लोभ की परीक्षा करता है।
नमि राजर्षि का उत्तर एयमढें णिसामित्ता, हेउकारणचोइओ। तओ णमी रायरिसी, देविंदं इणमब्बवी॥४७॥
भावार्थ - शक्रेन्द्र का पूर्वोक्त अर्थ - प्रश्न सुन कर हेतु और कारण से प्रेरित हुए नमि' राजर्षि देवेन्द्र से इस प्रकार कहने लगे।
सुवण्ण रुव्वस्स उ पव्वया भवे, सिया हु केलाससमा असंखया। णरस्स लुद्धस्स ण तेहिं किंचि, इच्छा हु आगाससमा अणंतिया॥४८॥
कठिन शब्दार्थ - सुवण्ण रुव्वस्स - सोने और चांदी के, पव्वया - पर्वत, सिया - कदाचित्, केलाससमा - कैलाश के समान, असंखया - असंख्यात, णरस्स - मनुष्य की लुद्धस्स - लोभी, इच्छा - तृष्णा, आगाससमा - आकाश के समान, अणंतिया - अनन्त। ___ भावार्थ - यदि कैलाश पर्वत के समान सोने चांदी के असंख्य पर्वत हों, फिर भी लोभी मनुष्य को उन पर्वतों से भी कुछ संतोष नहीं होता निश्चय ही इच्छा आकाश के समान अनन्त है।
विवेचन - धन परिमित है और इच्छा अनन्त है, इसलिए उसका पूर्ण होना असंभव है। केवल संतोष धारण करने से ही इच्छा की निवृत्ति हो सकती है। .. ___ यहाँ पर जो कैलाश पर्वत का नाम आया है वह हिमालय पर्वत की महादेव जी के रहने की पर्वत श्रृंखला का नाम समझना चाहिए। लौकिक उपमा से समझाने के लिए कैलाश पर्वत का नाम बताया गया है। मेरु पर्वत को यहाँ नहीं समझना चाहिए।
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