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उत्तराध्ययन सूत्र - नौवां अध्ययन kakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk भावार्थ - शक्रेन्द्र का पूर्वोक्त अर्थ - प्रश्न सुन कर हेतु और कारण से प्रेरित हुए नमि राजर्षि देवेन्द्र से इस प्रकार कहने लगे।
जो सहस्सं सहस्साणं, मासे मासे गवं दए। तस्मावि संजमो सेओ, अदितस्स वि किंचणं॥४०॥
कठिन शब्दार्थ - मासे मासे - प्रतिमास, गवं - गायों का, दए - दान करता है, तस्सावि - उससे भी, संजमो - संयम, सेओ. - श्रेयस्कर, अदितस्स - दान न करे, किंचणं - किंचित् मात्र भी।
भावार्थ - जो पुरुष प्रतिमास दस लाख गायों का दान करता है उसकी अपेक्षा कुछ भी दान नहीं करने वाले मुनि का संयम अधिक श्रेष्ठ है।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में सावद्य और निरवद्य वृत्ति का स्पष्टीकरण किया गया है। आठवां प्रश्न-गृहस्थाश्नम का त्याग कर संन्यास क्यों? .
एयमटुं णिसामित्ता, हेउकारणचोइओ। तओ णमि रायरिसिं, देविंदो इणमब्बवी॥४१॥ .
भावार्थ - नमि राजर्षि के उत्तर देने के बाद पूर्वोक्त अर्थ सुन कर हेतु और कारण से प्रेरित हुए देवेन्द्र ने नमिराजर्षि से यह कहा।
घोरासमं चइत्ताणं, अण्णं पत्थेसि आसमं। इहेव पोसहरओ, भवाहि मणुयाहिवा॥४२॥
कठिन शब्दार्थ - घोरासमं - घोराश्रम-गृहस्थाश्रम को, चइत्ताणं - छोड़ कर, अण्णंअन्य, पत्थेसि - इच्छा करते हो, आसमं - आश्रम की, इहेव - यहीं पर ही, पोसहरओ - पौषध में रत, भवाहि - हो जाओ, मणुयाहिवा - मनुजाधिप (नरनाथ)। ___ भावार्थ - मनुष्यों के अधिपति हे राजन्! आप घोर गृहस्थाश्रम का त्याग कर अन्य संन्यास आश्रम की इच्छा कर रहे हैं, यह आप जैसे वीर क्षत्रियों के योग्य नहीं है। आप यहीं गृहस्थाश्रम में रह कर ही पौषध आदि व्रतों में रत रहो।
विवेचन - गृहस्थाश्रम छोड़ कर संन्यास लेने की अपेक्षा आपके लिए यह अधिक उपयुक्त होगा कि आप गृहस्थावास में रह कर ही पौषध आदि धर्मानुष्ठानों का आचरण करें।
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