________________
नमि प्रव्रज्या - इन्द्र द्वारा स्तुति
१५३ kakkakakakakakakakakakakakaaaaaaaaaaaaaaaaaa**
अहो ते अजवं साहु, अहो ते साहु महवं।
अहो ते उत्तमा खंती, अहो ते मुत्ति उत्तमा॥५७॥ - कठिन शब्दार्थ - अजवं - ऋजुता (सरलता), साहु - श्रेष्ठ है, मद्दवं - मृदुता, उत्तमा - उत्तम, खंती - क्षान्ति (क्षमा), मुत्ति - मुक्ति (निर्लोभता)।
भावार्थ - अहो! आपकी ऋजुता - सरल स्वभाव श्रेष्ठ है। अहो! आपकी मृदुतानिरभिमानता श्रेष्ठ है। अहो! आपकी क्षमा उत्तम है और अहो! आपकी निर्लोभता उत्तम है।
विवेचन - जिस प्रकार क्रोधादि चारों दुर्गुण इस आत्मा के निकटवर्ती बलवान् शत्रु हैं उसी प्रकार आर्जवादि सद्गुण इस आत्मा के अत्यंत हितकारी-मित्र हैं।
इन्द्र द्वारा स्तुति - इहंसि उत्तमो भंते, पेच्चा होहिसि उत्तमो।
लोगुत्तमुत्तमं ठाणं, सिद्धिं गच्छसि णीरओ॥५॥ ...कठिन शब्दार्थ - इहं - इस लोक में, पच्छा - परलोक में भी, होहिसि - होंगे, लोगुत्तमुत्तमं - लोकोत्तर उत्तम, ठाणं - स्थान को, सिद्धिं - सिद्धि को, णीरओ - नीरजकर्म रज से रहित होकर।
भावार्थ - हे भगवन्! इस लोक में आप उत्तम हैं और पर लोक में उत्तम होंगे। कर्मरज रहित हो कर आप लोक में उत्तमोत्तम (सर्वोत्तम) सिद्धि स्थान में जायेंगे।
एवं अभित्थुणंतो रायरिसिं उत्तमाए सद्धाए। .. पयाहिणं करेंतो, पुणो पुणो वंदइ सक्को॥५६॥
कठिन शब्दार्थ - अभित्थुणंतो - स्तुति करता हुआ, सद्धाए - श्रद्धा से, पयाहिणं - प्रदक्षिणा, करेंतो - करते हुए, पुणो पुणो - बार बार, वंदइ - वंदना करता है, सक्को - शक्र (इन्द्र)।
. भावार्थ - इस प्रकार इन्द्र उत्तम श्रद्धा और भक्तिपूर्वक नमि राजर्षि की स्तुति करता हुआ और प्रदक्षिणा करता हुआ बार-बार उन्हें वन्दना नमस्कार करने लगा। ... विवेचन - गुणों के द्वारा मनुष्य, सर्वत्र और सबका पूज्य बन जाता है। सद्गुणी पुरुषों का साधारण मनुष्य तो क्या, देवता तक भी आदर करते हैं। इसी भाव से प्रेरित होकर इन्द्र ने
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org