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दुमपत्तयं णामं दसमं अज्झयणं द्रुमपत्रक नामक दसवां अध्ययन
उत्थानिका नवमें अध्ययन में चारित्र निष्ठा का वर्णन किया गया परन्तु चारित्रिक दृढ़ता गुरु भगवंतों की शिक्षाओं पर ही निर्भर है। अतः इस दशवें अध्ययन में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अपने शिष्य गौतम स्वामी को विभिन्न रूपकों के द्वारा शिक्षा देते हुए प्रतिपल प्रतिक्षण जागृत रहने का संदेश दिया है। प्रभु महावीर ने इस छोटे से अध्ययन में एक बार नहीं ३६ बार इस बात को दोहराया है कि समय मात्र क्षण मात्र का प्रमाद मत करो। इस प्रकार गौतम को संबोधित कर जीवन को ओस बिन्दु एवं पीले पत्ते की तरह क्षण भंगुर • समझ कर सदैव आत्मा के मूल लक्ष्य के प्रति प्राणी मात्र को सदैव जागृत रहने का उपदेश ( उद्बोधन ) दिया गया है। द्रुमपत्रक नामक इस अध्ययन की प्रथम गाथा इस प्रकार हैं - जीवन की क्षणभंगुरता
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दुम पत्तए पंडुयए जहा, णिवडइ राइगणाण अच्चए ।
एवं मणुयाण जीवियं, समयं गोयम! मा पमायए ॥१॥
कठिन शब्दार्थ - दुमपत्तए रात्रि के गण (समूह), राइगणाण जीवियं - मनुष्यों का जीवन, समयं
प्रमाद मत कर ।
भावार्थ - जिस प्रकार रात्रि और दिनों के गण अर्थात् समूह बीत जाने पर वृक्ष का पत्ता, अवस्था अथवा रोगादि कारणों से पीला हो कर नीचे गिर पड़ता है, इस प्रकार मनुष्यों का जीवन है अतएव हे गौतम! समय मात्र भी प्रमाद मत कर।
विवेचन - इस गाथा में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने गौतम को संबोधन करते हुए - अपने कर्त्तव्यों के प्रति पूर्णतया सजग रहने का उपदेश दिया है।
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वृक्ष का पत्र, पंडुयए - पीला, णिवडड़ गिर जाता है, अच्चए अतिक्रम होने बीत जाने पर, मणुयाणक्षण मात्र भी, गोयम हे गौतम!, मा पमायए
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जो कल बालक था वह आज युवा दिखाई देता है और जो जवान था वह बूढ़ा हो गया । कल जो पत्र वृक्ष के साथ लगे हुए उसकी शोभा बढ़ा रहे थे आज वे उससे गिर कर (अलग
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