Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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द्रुमपत्रक - अप्काय की कायस्थिति ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
भावार्थ - पृथ्वीकाय में गया हुआ जीव इस काय में उत्कृष्ट संख्यातीत अर्थात् असंख्यात काल तक रहता है अतएव हे गौतम! समय मात्र भी प्रमाद मत कर।
विवेचन - इस गाथा में पृथ्वी के जीव की कायस्थिति का वर्णन किया गया है। पृथ्वीकाय का जीव मर कर वापिस उसी काय में पैदा हो जाय उसे कायस्थिति कहते हैं। यानी पृथ्वी का जीव मर कर पृथ्वी में ही उत्पन्न होता रहे इस क्रम से उसकी उत्कृष्ट स्थिति असंख्यात काल पर्यन्त रहती है। पृथ्वी ही जिस जीव का काय (शरीर) है उसको 'पृथ्वीकाय' कहते हैं अतः उत्कृष्ट दशा में यह जीव असंख्यात काल तक पृथ्वी में जन्म मरण कर सकता है। ऐसी अवस्था में गया हुआ जीव संसार के आवागमन चक्र में फंस जाता है और वहाँ से उसका निकलना अत्यन्त कठिन हो जाता है। अतः मनुष्य जन्म प्राप्त किये हुए प्राणियों को समय मात्र भी धर्मकृत्यों में प्रमाद नहीं करना चाहिये।
उक्त गाथा में आये हुए संख्यातीत शब्द का अर्थ असंख्यात काल पर्यन्त होता है। पण्णवणा सूत्र के अठारहवें पद में लिखा है कि - .. पुढवीकाइए कालओ केवचिर होइ? . गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं असंखेज्जाओ उस्सप्पिणिओ कालओ खेत्तओ असंखेज्जा लोगा एवं तेउ वाउ काइयावि।
अर्थात् - गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं कि - हे भगवन्! पृथ्वीकाय में जीव कब तक रह सकता है?
भगवान् फरमाते हैं - हे गौतम! जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट असंख्यात काल अर्थात् काल से असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणियों के समय प्रमाण और क्षेत्र से असंख्यात लोक के जितने आकाश प्रदेश हैं उनके प्रमाण, इसी प्रकार अप्काय, तेउकाय और वायुकाय के विषय में भी समझना चाहिये।
अप्काय की कायस्थिति आउक्कायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे। कालं संखाईयं, समयं गोयम! मा पमायए॥६॥ कठिन शब्दार्थ - आउक्कायं - अप्काय में। .
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